गुरु नानक जयंती पर निबंध (Guru Nanak Jayanti Essay in Hindi)

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गुरु नानक जयंती पर निबंध
Guru Nanak Jayanti Essay in Hindi

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प्रस्तावना

सिख संप्रदाय के संस्थापक श्री गुरूनानक देव जी समस्त भारत में पूजे जाते हैं। वे सिर्फ अपने संप्रदाय या धर्म के प्रति ही नहीं बल्कि राष्ट्र के प्रति पूर्ण सम्मान काभाव रखते थे। वे सिख धर्म के प्रथम गुरु थे जिनकी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए कुल दस गुरुओं ने लोगों को मार्ग दिखाया । इन दस गुरुओं ने सिर्फ लोगों कादया, धर्म व मानवता की ही शिक्षा नहीं दी वरन स्वयं के आत्मसम्मान, ईमानदारी और देश के लिये जान लुटा देने की भी मिसाल कायम की। इस निबंध में हमगुरु नानक जी के जीवन के संबंध में कुछ आवश्यक बातें जानेंगे और गुरु नानक जयंती का सही मर्म भी देखेंगे ।

गुरु नानक जी का जन्म, बाल्यकाल एवं शिक्षा

इनका जन्म वर्ष 1469 में कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन भारतवर्ष के पंजाब के तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था। स्वतंत्रता के बाद यह भाग पाकिस्तान मेंशामिल हो गया था। इनका परिवार आर्थिक दृष्टि से संपन्न परिवार था । इनके पिता बाबा कालू चंद वेदी गाँव के राजस्व प्रशासन अधिकारी के तौर पर नियुक्तथे । इनकी माता का नाम तृप्ता था जो अत्यन्त धार्मिक प्रवृत्ति की महिला तथा एक गृहिणी थीं।

गुरु नानक देव जी की बड़ी बहन का नाम नानकी था जो उनसे बेहद प्रेम करती थीं। गुरू नानक जी बचपन से ही एक अद्भुत प्रतिभा के बालक थे। हालांकि वेविद्यालयीय शिक्षा में, उतना रस नहीं लेते थे लेकिन कम उम्र से ही उन्होंने विभिन्न भाषाओं हिन्दी संस्कृत, फारसी का अध्ययन आरम्भ कर दिया था और 13 वर्षकी आयु तक ये अच्छे जानकार भी हो गये थे। अपने ज्ञान व बुद्धिमत्ता से वे सभी उम्र के लोगों को आश्चर्य चकित कर देते थे।

गुरू नानक जी का विवाह 16 वर्ष की कम आयु में ही हो गया था। इनके दो पुत्र भी थे जिनका नाम श्रीचंद्र तथा लक्ष्मीदास था। गुरु नानक जी को अलग अलगस्थानों की यात्रा करने की इच्छा थी।

गुरू नानक जी की यात्रायें

धीरे-धीरे ये पंजाब के विभिन्न धार्मिक व ऐतिहासिक स्थानों की यात्रा करने लगे। इनकी यात्राओं को सिख धर्म में उदासियाँ कहा जाता है। इसके उपरान्त इनकेयात्रायें और अधिक विस्तृत होती गईं | कुरुक्षेत्र, हरिद्वार, अयोध्या और प्रयाग से लेकर गुवाहाटी, ढाका, पुरी और कटक तक तथा रामेश्वरम, सीलोन, उज्जैन, मथुरा से लेकर उत्तरी भारत के तिब्बत और लद्दाख के क्षेत्रों तक इन्होंने यात्रायें कीं।

यात्राओं के दौरान ही ये लोगों से मिलते और उन्हें सिख धर्म के उपदेश देते थे। वर्ष 1520 में जब बर्बर आक्रांता बाबर ने हिन्दुस्तान पर आक्रमण किया तथाहिन्दुओं पर अत्याचार किये। तब गुरुनानक जी ने कड़े शब्दों में बाबर के अत्याचारों का विरोध किया ।

गुरु नानक जयंती का महत्व

गुरु नानक जयंती का पर्व सम्पूर्ण भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह पर्व कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। गुरु नानक जी कीशिक्षाओं का संग्रह पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रन्थ साहिब जिसे आदिग्रंथ भी कहते हैं, इस दिन इसी ग्रंथ का पाठ व सत्संग विशाल स्तर पर किया जाता है।

यूं तो सिख धर्म के अनुसार लंगर की प्रथा में किसी भी धर्म, जाति, तथा वर्ग विशेष से सर्वथा मुक्त वातावरण सदा रहता ही है। परंतु गुरु पर्व के विशेष दिन ऐसेकार्यक्रमों का बड़े स्तर पर संचालन किया जाता है।

10 वें सिख गुरु गुरु गोविंद सिंह ने अपने अंतिम दिनों में कहा था कि हमारा पर्थ-प्रदर्शन गुरु ग्रन्थ साहिब ही करेगी। गुरु नानकदेव धर्म, जाति, स्त्री-पुरुष भेद, अंधविश्वास आदि के नाम पर होने वाले झगड़ों, पाखण्डों, कर्मकाण्डों का सदैव विरोध करते थे। उनकी शिक्षाएं सर्वग्राही तथा सर्वसमावेशी हैं जिनकाप्रतिनिधित्व स्वयं गुरु ग्रंथ साहिब करती है।

सिख धर्म की गुरू वाणी का अर्थ-

‘एक ओंकार सतनाम’ – ईश्वर एक है

करता पुरख – वहीं एकमात्र कर्ता है

निर्बेरू – वह किसी से बैर नहीं रखता

निरभऊ – वह ईश्वर भय से भी परे है

अकाल मूरति – वह समय के बंधन में भी नहीं है, न उसकी कोई प्रतिमा है

अजूनि – वह अजन्मा है और जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्त है

सैभं – वह स्वयं प्रकाश स्वरूप है

गुरप्रसादि – उसके दर्शन गुरु की कृपा से ही होते हैं।

गुरू नानक जी के जीवन के अंतिम दिन

गुरु नानक देव एक स्थान से दूसरे स्थान पर लोगों को शिक्षायें देने जाते रहे। ये भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रमुख रूप से मक्का, मदीना, तेहरान आदिस्थानों की यात्राओं पर भी गये थे।

अपने अंतिम दिनों में थे करतारपुर में आकर रहे (वर्तमान में पाकिस्तान का हिस्सा) थे। इनका दिन कीर्तन, भजन व लोगों का पथ- प्रदर्शन करने में ही व्यतीत होजाता था। इसके उपरांत वर्ष 1539 में 22 सितंबर को गुरु नानक देव जी के रूप में एक महान आत्मा इस धरा को छोड़कर सदा के लिए चली गई।

निष्कर्ष

गुरु नानक देव जी भारतवर्ष के एक महान संत थे । ये भक्तिकाल के एक प्रमुख संत भी थे। इनकी शिक्षायें सर्वसुलभ थी तथा किसी भी धर्म, जाति, स्त्री-पुरुषके बंधनों से मुक्त थीं। जो शिक्षायें इन्होंने दीं उनका स्वयं पालन कर हमारे लिये उदाहरण भी प्रस्तुत किया। हम और हमारा देश आज भी गुरु नानक देव जी केऋणी हैं।

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