Biography of Rabindranath Tagore in Hindi Language | गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की जीवनी

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Biography of Rabindranath Tagore in Hindi Language | गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की जीवनी
Biography of Rabindranath Tagore in Hindi Language | गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की जीवनी

Biography of Rabindranath Tagore in Hindi Language
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की जीवनी

🇮🇳 Biography of Rabindranath Tagore in Hindi Language | गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की जीवनी class 3,4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए और अन्य विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए लिखा गया है।

दोस्तों रविंद्र नाथ टैगोर का नाम तो आपने सुना ही होगा। वो एक महान लेखक, उपन्यासकार व दार्शनिक थे। उन्होंने कई सारी प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं। हमारे देश का राष्ट्रगान भी उन्हीं के द्वारा लिखा गया है। उनके द्वारा लिखा गया कविता संग्रह गीतांजलि को वर्ष 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार भी मिला था।

आज हम आपको रविद्र नाथ टैगोर के जीवन और उनके कार्यों से परिचित कराते हैं। आइये चलते हैं रविद्र नाथ टैगोर की जीवनी की ओऱ-

रविन्द्र नाथ टैगोर का बचपन तथा शिक्षा(Childhood and Education of Ravindra Nath Tagore)

रविंद्र नाथ टैगोर का जन्म कोलकाता शहर में 7 मई 1861 को हुआ था। इनके पिता का नाम देवेन्द्र नाथ टैगोर था तथा माता का नाम शारदा देवी था। इनके बचपन में ही इनकी माता का निधन हो गया था। पर चूँकि इनका परिवार काफी समृद्ध था इसलिये इनके पालन पोषण में किसी प्रकार की आर्थिक परेशानियां नहीं आयीं।

इन्हें बचपन से ही नयी नयी जगहों पर घूमने का शौक था। शारीरिक क्रियाओं जैसे व्यायाम आदि में भी इनकी अच्छी रुचि थी। अपनी उम्र के दूसरे बच्चों की रुचि के विपरीत इनमें संगीत के प्रति भी लगाव पैदा हो गया था। इनके बड़े भाई का द्विजेन्द्रनाथ टैगोर एक कवि थे तथा दूसरे भाई सत्येंद्रनाथ टैगोर यूरोप की सिविल सेवा में नियुक्त पहले भारतीय थे। इनके तीसरे भाई भी एक कुशल संगीतकार थे तथा बहन स्वर्णकुमारी एक उपन्यासकार थी। जाहिर है ये भी अपने भाई-बहनों की भाँति अद्भुत प्रतिभा से भरे थे।

बचपन में स्कूली पढ़ाई से बचने का इन्होंने पूरा प्रयास किया क्यूँकि इन्हें प्रकृति के साथ वक्त बिताना पसंद था। इनके द्वारा स्थापित शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय भी इसी सिद्धांत पर आधारित है कि हमें प्रकृति के करीब रहना चाहिए। धीरे धीरे इन्होंने स्वयं अध्ययन करते हुए कई विषयों व भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। तैरना भी इन्हें बखूबी आता था। इनके पसंदीदा विषयों में भूगोल, साहित्य, संस्कृत व अंग्रेजी आदि शामिल थे। स्वभाव से रविन्द्रनाथ एक खोजी व्यक्ति थे।

11 साल की उम्र में वो अपने पिता के साथ देश यात्रा के लिये कलकत्ता छोड़ कर चल गए। इन्होंने अपने पिता की समपत्ति शांतिनिकेतन को देखा और अमृतसर के स्वर्ण मंदिर व डलहोजी की यात्राएं कीं। हिमालय की कुछ प्रसिद्ध जगहों की भी यात्राएं इन्होंने कीं। इन सभी का उल्लेख उन्होंने अपनी पुस्तक ‘मेरी यादों’ में भी किया है।

अपनी बेरिस्टर बनने की इच्छा को पूरा करने के लिये ये इंग्लैंड भी गए जहाँ लंदन यूनिवर्सिटी से ला(कानून) की पढ़ाई की लेकिन डिग्री लिए बिना ही भारत वापस आ गए। इसके 3 साल बाद 1883 में उनका विवाह मृणालिनी देवी के साथ हुआ।

रविन्द्र नाथ टैगोर का साहित्यिक जीवन व रचनाएं(Literature and Life of Ravindra Nath Tagore)

इनका परिवार का वातावरण बहुत जागरुक था क्योंकि परिवार के सभी लोग पढे लिखे थे और कला व साहित्य के प्रति रुचि रखते थे। यही वजह थी कि इनके परिजनों ने इन्हें कभी भी लेखन करने या साहित्य पढ़ने से नहीं रोका। इसका परिणाम हुआ कि इन्होंने 8 साल की कम उम्र में अपनी पहली कविता लिखी और 16 साल की उम्र अपनी पहली लघुकथा प्रकाशित करवाई। 

रविन्द्र नाथ टैगोर ने कहानियाँ, कविताएं, उपन्यास, नाटक, निबंध, यात्रावृत्त आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएं लिखीं। इनका प्रसिद्ध कविता संग्रह गीतांजली साहित्य की नोबेल पुरस्कार विजयी रचना है। गीतांजलि में एक भक्त द्वारा अपने भगवान की भक्ति में गाये हुए गीतों का सुंदर संग्रह है। गीतांजलि को सबसे पहले बांग्ला भाषा में लिखा गया, बाद में अंग्रेजी और हिंदी में इसका अनुवाद किया गया था। 

रविन्द्र नाथ टैगोर की कहानियों में काबुली वाला, कंचन, दृष्टिदान, पिंजर, पराया, खोया हुआ मोती, कवि का हृदय, कवि और कविता तथा नई रोशनी आदि उल्लेखनीय हैं। इनके द्वारा लिखे गए उपन्यास आज भी बड़ी मात्रा में साहित्य के प्रेमियों द्वारा पढ़े जाते हैं। इनके उपन्यास दो बहनें, राजर्षि, आँख की किरकिरी, चोखेर बाली तथा गोरा आदि है। 

आपको जानकर आश्चर्य होगा लेकिन भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ तथा बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ दोनों ही गुरुदेव टैगोर के द्वारा ही लिखे गए थे। यह दर्शाता है कि वे इन दोनों देशों से कितनी निकटता से जुड़े हुए थे। इन्होंने अपने अधिकतर गीत बांग्ला भाषा में लिखे जिनकी संख्या 2200 से भी अधिक है। ये कहना गलत नहीं होगा कि इनकी जिह्वा पर माँ सरस्वती का वास था जिन्होंने उन्हें इतनी सृजनात्मकता प्रदान की।

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रविन्द्र नाथ टैगोर का जीवन दर्शन(Philosophy of Ravindra Nath Tagore)

रविन्द्र नाथ टैगोर महात्मा गाँधी व अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे महापुरुषों से भी मिले थे। महात्मा गाँधी ने इन्हें ‘गुरुदेव’ की उपाधि से सम्मानित किया था। 1915 में किंग जार्ज ने इन्हें नाइटहुड़ की उपाधि से प्रदान की। लेकिन इन्होंने अप्रैल 1919 में हुए जालियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद उन्होंने विरोध स्वरुप वह उपाधि वापस कर दी। 

रविन्द्रनाथ टैगोर प्रकृति प्रेमी थे तथा अपना अधिकतर समय प्रकृति के साथ बिताना पसंद करते थे। जब इन्होंने शांतिनिकेतन को विश्व भारती विश्वविद्यालय में बदलने का निर्णय लिया तो कुछ समय तक इन्हें आर्थिक परेशानियों का सामना करना होता था। तब ये अलग अलग जगहों पर नाटक का मंचन करते और धन जुटाते। उस संकट की घड़ी में गाँधी जी ने भी इन्हें 60 हजार रुपयों की मदद की थी।

उन्होंने अपनी रचनाओं में इंसान के स्वाभाविक गुणों को राष्ट्रवाद को अधिक महत्व दिया है साथ ही राष्ट्रवाद को भी देश की प्रगति का आवश्यक हिस्सा माना है। उनके व गांधी जी के विचार कुछ विषयों में विपरीत रहे थे परंतु इससे उनके आपसी सम्मान व संबंधों में कोई बदलाव नहीं आया बल्कि मजबूत बने रहे।

अपने जीवनकाल के अंतिम दिनों में रवीन्द्रनाथ टैगोर (Ravindra Nath Tagore in his last days)

रविन्द्र नाथ टैगोर ने अपना जीवन हमेशा प्रकृति के समीप बिताते हुए और अपनी लेखन के लिए समर्पित कर दिया था।

एक तरफ रविन्द्र नाथ टैगोर की कविताएं भगवान और इंसान के अनजाने संबंध की तरफ इशारा करती थीं वहीं दूसरी तरफ उन्होंने अपने चित्रों के माध्यम से भी अपने भाव प्रकट किये हैं। उन्होंने मानवीय मूल्यों व मौलिक गुणों के भी गहरे विचार अपनी कला में उकेरे हैं।

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भारतीय लोगों और समाज को नयी दिशा प्रदान की जिसका प्रभाव हम आज भी अपने चारों ओर देख सकते हैं। रविन्द्र नाथ टैगोर हमारे देश के एक महापुरुष थे जिन्होंने हमें काफी कुछ दिया।  7 अगस्त 1941 को 80 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन आज भी हम उन्हें एक युगदृष्टा व गुरुदेव के रूप में स्मरण करते हैं जो हमें हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे।

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