मातृभूमि पर निबंध (Essay on My Motherland in Hindi)

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मातृभूमि पर निबंध
Essay on My Motherland in Hindi

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प्रस्तावना

हम जहाँ जन्म लेते हैं और जहाँ पर हमारा पालन-पोषण होता है, उस जगह व देश को हमारी मातृभूमि कहा जाता है। मातृभूमि शब्द बहुत व्यापक है। इसका अर्थ है वह भूमि जो हमारी माता के समान है। असल में मातृभूमि ही हमें पोषण करती है और हमारा शरीरिक और मानसिक विकास करती है। अपनी मातृभूमि के प्रति हमारा प्रेम धीरे-धीरे पनपता है इसीलिये मातृभूमि से दूर जाने पर हमें इसकी याद सताती है। आइये मातृभूमि के संबंध में कुछ अन्य बातें, इसके प्रति हमारा प्रेम को थोड़ा बारीकी से समझते हैं।

मेरी मातृभूमि भारत

मेरा जन्म भारत में हुआ और यह मेरी मातृभूमि है। वैसे तो एक छोटे भूखण्ड जैसे गाँव, नगर को भी मातृभूमि कहा जाता है। किंतु मैं अपनी मातृभूमि पूरे देश भारत को ही मानता हूँ। क्योंकि यहाँ की संस्कृतियाँ एक दूसरे से बहुत अधिक भिन्न नहीं हैं। भारत में हर जगह प्रेम और भाईचारा को महत्व दिया जाता है।

सांस्कृतिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्व

भौगोलिक क्षेत्र

भारत को भौगोलिक क्षेत्र के हिसाब से सम्पूर्ण विश्व में सातवाँ स्थान है। इसका कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किमी है। हमारा देश उत्तर दिशा में हिमालय पर्वत से, दक्षिण-पश्चिम में अरब सागर से, तथा दक्षिण-पूर्व में बंगाल की खाड़ी व हिंद महासागर से घिरा हुआ है। इन्हीं भौगोलिक आवरणों के कारण भारत के बारे पश्चिमी देशों को ज्ञान नहीं था। लेकिन फिर इंसान की जिज्ञासा और दुनिया का हर कोना देखने की लालसा ने भारत का भी दर्शन दुनिया को करा दिया। 

ऐतिहासिक महत्व

स्थलीय और समुद्री मार्गों से व्यापारियों ने हमारी मातृभूमि पर आकर व्यापार करना शुरु किया। इसके बाद कई विदेशी आक्रमणकारियों ने हमें सदियों तक गुलाम बनाये रखा। मुगलों और अंग्रेजों ने हमारी संस्कृति को छिन्न-भिन्न करे के कई प्रयास किये परन्तु इस मातृभूमि के वीर सपूतों के आगे उन्हें अंतत: घुटने टेकने पड़े।

सांस्कृतिक पहलू

हमारी मातृभूमि में भले ही कितने ही राज्य बसे हों लेकिन इसका सांस्कृतिक मौलिक आधार केवल मानवता, प्रेम और करूणा है। आक्रमणकारी भारत को हर रूप में तोड़ना चाहते थे, चाहे वह भौगोलिक, आर्थिक या सांस्कृतिक रूप से हो। किंतु वे ऐसा नहीं कर पाये क्योंकि भारत की आधार उसकी संस्कृति है, जो शाश्वत सिद्धांतों पर बनी हुई है। भारत की संस्कृति सनातन है, इसका न कोई अंत है, न सीमा। प्राचीन काल के ऋषियों ने हमें उच्च कोटि के शाश्वत मूल्य हमें विरासत में दिये हैं, जो बहूमूल्य हैं। उनके वचन हैं कि अपनी मातृभूमि और उसकी संस्कृति का ज्ञान ही हमें उन्नति के मार्ग पर अग्रसर करता है। मातृभूमि के लिये लड़ने वाले लोगों वीरगति प्राप्त करते हैं और लंबे समय तक उनका स्मरण करके उनसे प्रेरणा ली जाती है।

मातृभूमि के प्रति प्रेम

सभी लोगों में अपनी मातृभूमि के प्रति विराट प्रेम होना चाहिए। भावी पीढ़ीयों तक अपने विचार और सिद्धांत पहुँचाने के केवल एक मार्ग है कि हम स्वयं उसका पालन करें। मातृभूमि के प्रति प्रेम को शब्दों में नहीं बताया जा सकता है। कई क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान देकर अपनी मातृभूमि और देश को गुलामी से मुक्त कराया है। वे मरकर भी अमर हो गए हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी मातृभूमि के सेवा में अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया। उन्हीं सैकड़ों क्रांतिकारियों में से किसी के यह उद्गार हैं-

जीवन पुष्प चढ़ा चरणों में माँगे, मातृ भूमि से यह वर,

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहें।

आजकल धन, संपत्ति की अनर्गल दौड़ में कई लोग अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम और यहाँ की संस्कृति के भुला बैठे हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने शरीर, मन और आत्मा का उपयोग इसकी सेवा के लिये कर रहे हैं। वे लोग पूजनीय हैं जो बिना किसी स्वार्थ के केवल मातृभूमि की खातिर अपनी जीवन को सार्थक कार्य में लगा देते हैं। उन्हीं के कारण आज भी हमारी संस्कृति का प्रसार वर्तमान पीढ़ी में हो रहा है।

उपसंहार

मातृभूमि के प्रति प्रेम की तुलना किसी भी अन्य वस्तु से नहीं की जा सकती है। हमारी मातृभूमि ही हमें जीवन प्रदान करती है। हम उसे कोई उपहार नहीं दे सकते, सिर्फ उसके अहसानों का अंशमात्र ही चुका सकते हैं। अपना जीवन अर्पित करके लाखों सैनानियों ने यही उदाहरण प्रस्तुत किया है। वे महान क्रांतिकारी न तो अपने मद, मोह और व्यसनों में अंधे थे, न ही उन्हें अपने मान, प्रतिष्ठा या किसी पद की चिंता थी। उन्हें केवल अपनी मातृभूमि से विशु्द्ध प्रेम था, जो हर एक व्यक्ति के हृदय में भी होना चाहिए।

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विनम्र अनुरोध: 

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