महिला सशक्तिकरण पर निबंध हिंदी में (Essay on Women Empowerment in Hindi Language)

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👩 यह महिला सशक्तिकरण पर हिंदी में निबंध (Essay on Women Empowerment in Hindi Language) प्रस्तावना, महत्व, स्थिति, भारत सरकार की योजनाए एवं निष्कर्ष (उपसंहार) सहित है। इस महिला सशक्तिकरण पर निबंध को आप अच्छे से पढ़े और अपनी लेखन क्षमता को मजबूत बनाएं। महिला सशक्तिकरण पर निबंध हिंदी में (Essay on Women Empowerment in Hindi)  कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए और अन्य विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए लिखा गया है। इस निबंध का उपयोग आप कहीं भी निबंध लिखने में कर सकते हैं।

महिला सशक्ति करण पर निबंध, जिसे अंग्रेजी में Essay on Women Empowerment भी कहा जाता है। महिला सशक्तिकरण पर निबंध (Essay on Women Empowerment in Hindi) लिखने का मुख्य उद्देश्य महिलाओं में सशक्तिकरण की भावना उत्पन्न करना है। क्योंकि महिलाओं को मजबूत बनना भी उतना ही ज़रूरी है, जितना की पुरुषों को। एक मजबूत महिला से ही एक मजबूत राष्ट्र बनता है। अक्सर स्कूल और कॉलेज में महिला सशक्तिकरण पर निबंध लिखने को कहा जाता है। आप इस निबंध को कहीं पर भी इस्तेमाल कर सकते हैं।


महिला सशक्तिकरण पर निबंध हिंदी में
Essay on Women Empowerment in Hindi Language


महिला सशक्तिकरण (Essay on Women Empowerment in Hindi) यानि महिलाएं आत्मनिर्भर बनकर अपने लिए स्वयं निर्णय ले सकें। उन्हें किसी भी प्रकार की बेड़ियां न बांध सकें। क्योंकि महिला सशक्तिकरण से ही हमारा देश उन्नति की ओर बढ़ सकता है। जिस देश की महिलाओं में सोचने-समझने, निर्णय लेने और ऊंचाइयों को छूने की योग्यता होती है, वही देश आगे बढ़ पाता है। हमारे भारत में महिलाओं की संख्या 48.04 प्रतिशत है। ऐसे में महिलाओं का देश की उन्नति में एक बड़ा योगदान है। 

महिलाओं को सशक्त बनाने में सबसे ज़्यादा आवश्यकता शिक्षा की है। एक शिक्षित महिला में ही सोचने, विचार करने, सही निर्णय लेने, एक अच्छी मां बनने की क्षमता होती है। वहीं एक अनपढ़ महिला का मानसिक और शारीरिक दोनों विकास रुक जाता है। वह स्वयं को सिर्फ घर की चार दीवारी तक ही सीमित रख पाती है। बल्कि यूं कहें कि घर के अंदर भी उसको जो आदर व सम्मान मिलना चाहिए, वह उसे नहीं मिल पाता। वह केवल पुरुष के हाथ की कठपुतली बनकर रह जाती है। यह न केवल महिलाओं के हित के लिए बुरा है, बल्कि पूरे देश पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।


महिला सशक्तिकरण पर निबंध इन हिंदी (Essay on Women Empowerment in Hindi) प्रारूप १


प्रस्तावना (Introduction) –

महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment) हमेशा से समय की मांग रही है। आज़ादी के वर्षों बाद तक महिला सशक्तिकरण को नजरअंदाज किया जाता रहा तथा महिलाओं को आदर्शवाद के बेड़ियों में जकड़ा जाता रहा। मगर बदलते समय के साथ स्थिति भी बदली और बड़े पैमाने पर महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में काम किया गया। आज इस महिला सशक्तिकरण का सकारात्मक प्रभाव शिक्षा से लेकर रक्षा तक के क्षेत्र में  देखने को मिल रही है।

महिला सशक्तिकरण के लिए आज बहुत से कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जो महिलाओं को सशक्त बनाने में काफी महत्वपूर्ण हैं। सदियों पहले लड़कियों को अभिशाप माना जाता था तथा अधिकतर लड़कियों को जन्म के समय ही मार दिया जाता था। मगर आज की महिलाएं महिला सशक्तिकरण की वजह से पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। महिला सशक्तिकरण के कारण ही आज भ्रूण हत्या, सती-प्रथा, बाल विवाह, दहेज प्रथा जैसी रूढ़ीवादी प्रथाओं पर नियंत्र प्राप्त हो सका है।

एक नारी जब अपना कदम आगे बढ़ाती है तो वह घर के काम के साथ-साथ बाहर भी अपनी सफलता का परचम लहराती है। यदि बात करें नारी की स्थिति की तो पहले के ज़माने से आज महिलाओं की स्थिति में बहुत बदलाव आया है। आज के युग में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हर चीज़ में हिस्सा लिया और भारत देश का नाम दुनियाभर में प्रसिद्ध किया। किरण बेदी, सोनिया गांधी, मैरीकॉम, सानिया नेहवाल, सानिया मिर्जा, अरुंधति भट्टाचार्य, सुषमा स्वराज, इंदिरा गांधी, प्रतिभा पाटिल आदि सशक्त महिलाओं का सबसे बड़ा उदाहरण हैं।


महिला सशक्तिकरण का महत्व (Importance of Women Empowerment in Hindi) –

महिला सशक्तिकरण हमारे और देश की उन्नति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। महिला सशक्तिकरण के कारण ही महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है। वरना पुराने जमाने में तो बेटियों का जन्म होते ही उन्हें मार डाला जाता था। इसके अलावा भ्रूण हत्या का भी बहुत ही चलन था। जब लोगों को पता चलता था कि कोख में बेटा नहीं बेटी है तो कोख में ही बिना मां की आज्ञा के उनकी हत्या कर दी जाती थी। वहीं सती-प्रथा तो ऐसा रूढ़ीवादी चलन था, जिसमें पति की मृत्यु होने पर पत्नी को जिंदा ही उसके पति के साथ उसकी अर्थी पर जला दिया जाता था। वह चीखती चिल्लाती, दर्द से तड़पती, लेकिन उसकी आवाज़ सुनने वाला कोई न होता। पुरुषों के सामने महिलाओं का बोलना तो छोड़ो, उनके सामने नज़र उठाकर देखने तक की पाबंदी थी। पुरुषों के आगे महिलाओं का दर्जा बहुत ही दयनीय था।

लेकिन धीरे-धीरे समय बदला। पुरुषों के साथ साथ महिलाएँ भी शिक्षित होती गईं, और उनके रहन-सहन के साथ ही उनकी सोच में भी बदलाव आता गया। उन्होंने अपने अधिकार के लिए आवाज उठानी शुरु कर दी। कट्टरपंथी और रूढ़ीवादी उन सभी प्रथाओं को समाप्त करने के लिए आवाज उठाई, जो उनका दर्जा पुरुषों से कम करती थीं। और खुद को इतनी आगे तक लेकर गईं कि पुरुषों ने भी उनके आगे घुटने टेक दिए। वहीं आज महिलाओं की स्थिति यह है कि ज़मीन पर नाम बनाने के साथ ही वो आंतरिक्ष तक पहुंच गईं। जी हाँ कल्पना चावला पहली ऐसी भारतीय महिला थीं, जिन्होंने आंतरिक्ष पर अपना कदम रखा। और यह सभी चीज़ें महिला सशक्तिकरण के ही कारण मुमकिन हो पाया। इसलिए हर नारी के जीवन में महिला सशक्तिकरण बहुत ही ज़रूरी है।


वर्तमान समय में महिलाओं की स्थिति (Present Day Status of Women) –

वर्तमान समय में महिलाओं की स्थिति पहले की तुलना में बहुत ही ज़्यादा बेहतर हो गई है। आज महिलाएं शिक्षित हैं, इसलिए उनमें सोचने समझने और निर्णय लेने की क्षमता है। वह अपने घर में अपनी सूझ-बूझ से घर को स्वर्ग बनाती हैं। बच्चों का अच्छे से पालन-पोषण करती हैं और समय आने पर नौकरी करके आर्थिक रूप से भी अपने पति का सहारा बनती हैं। वह शिक्षित व सशक्त महिला ही होती है, जो अपने बच्चे को डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, फौजी आदि बनाती है। अपने बच्चे को देश के लिए उसके कर्तव्य के बारे में बताती है। कहते हैं जब एक पुरुष शिक्षित होता है तो वह के वह अकेला शिक्षित होता है, लेकिन जब एक महिला शिक्षित होती है तो उसके साथ पूरा परिवार शिक्षित होता है। और सच्चाई यह है कि पी परिवार से समाज बनता है और उस समाज से हमारा राष्ट्र। आज भारत की महिलाएँ कितना नाम कमा रही हैं, वह आप निम्नलिखित बिंदुओं से समझ सकते हैं –

• हरनाज कौर सिंधु एक भारतीय मॉडल हैं, जिन्होंने 2021 में मिस यूनिवर्स का खिताब अपने नाम कर लिया। यह भारत की तीसरी मिस यूनिवर्स बनी हैं। इनसे पहले सुष्मिता सेन जो कि सबसे पहली भारतीय मिस यूनिवर्स थीं और लारा दत्ता, जो कि दूसरी मिस यूनिवर्स बनी थीं।

• पीवी सिंधु एक भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी हैं। इन्होंने 2018 एशियाई खेलों में रजत प्राप्त किया। इसके अलावा यह विश्व चैंपियनशिप में पांच या उससे ज़्यादा पदक जीतने वाली दूसरी महिला एथलीट हैं। वहीं पीवी सिंधु ने 2016 में राजीव गांधी खेल रत्न, 2015 में पद्मश्री तथा 2020 में पद्म भूषण अपने नाम किया।

सानिया मिर्ज़ा जो कि टेनिस प्लेयर हैं, उन्होंने भी राजीव गांधी खेल रत्न (2014), पद्म भूषण (2016), इसके साथ ही कई अन्य पुरस्कार भी अपने नाम किया है।

अंशु मलिक जो कि एक भारतीय पहलवान हैं। इन्होंने नॉर्वे के ओस्ले में चल रही विश्व कुश्ती चैंपियनशिप 2021 में सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास के पन्नों पर अपना नाम लिख दिया है। वह पहली ऐसी भारतीय महिला हैं जिन्होंने ऐसा कर दिखाया।

• इसके अलावा सानिया नेहवाल भी आज की एक सशक्त महिला हैं, जिन्होंने बहुत सारी उपाधि अपने नाम की है।

इन महिलाओं के अलावा भी आज अलग-अलग क्षेत्रों में बहुत सारी ऐसी महिलाएं हैं, जिन्होंने भारत देश को एक अलग ही पहचान दी है। लेकिन इसके बावजूद भी आज कई ऐसी महिलाएं हैं, जो अत्याचार सह रही हैं। और बहुत सारी ऐसी महिलाएं हैं, जो पुरुषों की साजिशों का शिकार बनी हैं। आज भी शिक्षा की कमी के कारण बलात्कार, दहेज-प्रथा, दहेज हत्या जैसी बुरी चीज़ें समाज का हिस्सा बनी हुई हैं। इन घिसी पिटी, हत्या व बलात्कार को दूर करने के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाएं चलाई जा रही हैं। इन सभी योजनाओं से महिलाओं की स्थिति में काफ़ी हद तक सुधार हुए हैं। 


महिला सशक्तिकरण योजना (Women Empowerment Schemes) –

महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा कई प्रकार की योजनाएं चलाई जा रही हैं, उन योजनाओं का लाभ उठाकर महिलाएं सशक्त बन सकती हैं। उनमें से कुछ महिला सशक्तिकरण योजनाएं नीचे दी गई हैं –

• बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना –

इस योजना की शुरुआत 22 जनवरी 2015 को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रारंभ की गई थी। इस योजना को भारत के अलग अलग क्षेत्रों में चलाया जा रहा है। इस योजना का उद्देश्य उन महिलाओं की मदद करना है, जो घरेलु हिंसा या किसी भी हिंसा का शिकार होती हैं।

• महिला शक्ति केंद्र योजना –

यह योजना 2017 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की तरफ से शुरू की गई योजना है, जिसको महिलाओं के संरक्षण तथा सशक्तिकरण के लिए बनाया गया है।

• सुकन्या समृद्धि योजना –

यह योजना 22 जनवरी 2015 को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रारंभ की गई थी। सुकन्या समृद्धि योजना 10 साल से कम उम्र की लड़कियों की उच्च शिक्षा और विवाह के लिए है।

• प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना –

यह एक ऐसी योजना है, जिसमें उन गृहणियों को मुफ्त में गैस सिलेंडर उपलब्ध कराई जाती है, जो आर्थिक रूप से कमज़ोर रहती हैं। इस योजना की शुरुआत 1 मई 2016 को उत्तर प्रदेश के बलिया से हुई थी, जिसे भारत के प्रधानमंत्री ने शुरू किया था।

निष्कर्ष (Conclusion) –

सशक्त महिलाएँ एक मजबूत राष्ट्र की नीव होती हैं। अपने देश को सफल बनाने और देश की उन्नति के लिए वो बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं। एक शिक्षित या सशक्त महिला घर और बच्चों के पालन पोषण की जिम्मेदारी भी बहुत ही बेहतर तरीके से निभाती है, और जब बात देश की आती है तो वो पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चलती हैं। इसका सबसे बड़ा सुबूत ये है कि आज महिलाएँ खेत की क्यारियों से लेकर देश के बॉर्डर तक अपनी सेवाएं देते हुए राष्ट्र निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। बात राजनीति की हो या फिर मनोरंजन तथा खेल के मैदान की… आज हर क्षेत्र में लड़कियां तथा महिलाएँ उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही हैं। ये सब कुछ महिला सशक्तिकरण की वजह से ही संभव हो पाया है।

आज तो कुछ क्षेत्रों में तो महिलाएँ पुरुषों से भी चार कदम आगे खड़ी नज़र आती हैं। देश के कठिन से कठिन परीक्षाओं में आज लड़कियां टॉप कर रही हैं। विज्ञान तथा तकनीक के क्षेत्रों में भी इनका जलवा है। आज ये सब कुछ महिला सशक्तिकरण के कारण ही संभव हुआ है।

मगर जब तक देश की हर बेटियों को हर तरह की बंदिशों से आज़ादी नहीं मिल जाती, महिला सशक्तिकरण का उद्देश्य अधूरा ही है। 

-|| धन्यवाद ||- 

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महिला सशक्तिकरण पर निबंध इन हिंदी (Essay on Women Empowerment in Hindi) प्रारूप २

जनवरी 14, 2022 by क्षमाश्री दुबे

महिला सशक्तिकरण का अर्थ है महिलाओं को सशक्त बनाना।  उन्हें हर क्षेत्र में प्राथमिकता , समानता और सम्मान देना। महिला सशक्तिकरण सिर्फ़ आज का नहीं बल्कि वर्षों से चर्चा का विषय बना हुआ है । ऐसा इसलिए क्योंकि हर क्षेत्र में महिलाओं ने प्रताड़ना  झेली है ,असमानता देखी है और अपने आत्म सम्मान का अपमान देखा है। लोंग मानते हैं कि यह विशेषतः भारतीय जनता के लिए एक रोमांचक मुद्दा है, पर यह महिला सशक्तिकरण का विषय विश्व भर की सभी महिलाओं पर लागू होता है। वे प्रतिदिन पुरुषों के अहंकार से लड़ती हैं और अपने लिए एक सफल और खुशहाल जीवन का बीज बो पाती हैं।

अपने अधिकार के लिए ना जाने कितने आंदोलन और संघर्ष करती हैं ताकि उनकी आने वाली पीढ़ी एक स्वतंत्र जीवन का  व्यापन कर सके। लैंगिक भेदभाव, कन्या भ्रूणहत्या तथा समाज से लड़ने के लिए वे न्यायालय के दरवाजों पर अपनी गुहार लगाती हैं। चाहे गलती पुरुष जाति की हो पर उसका जिम्मेदार हमेशा महिलाओं को माना जाता है। उन्हें समझाया जाता है कि कैसे कपड़े पहने जाए,कैसे कमाया जाए तथा उनके लिए क्या काम बना है क्या नहीं ? उनके जीवन के हर फैसले उन्हें स्वयं नहीं करने दिये जाते हैं, फिर वह शिक्षा का विषय हो या विवाह।  वे या तो परिवार या पति के फैसलों के आगे झुक जाती हैं। 

ऐसा कब तक चलेगा? महिलाओं को जरूरत है अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने की , वे सशक्त तभी होंगी जब वे खुद के फैसले खुद लेंगी और दूसरों की संतुष्टि हेतु अपनी खुशी का गला  ना घोटें । शहरों में तो बहुत हद तक महिला सशक्तिकरण का रूप देखा जा चुका है, पर गाँवों में आज भी महिलाएं घर की इज्ज़त और अन्य प्रश्नों के बारे में सोचकर चुप रह जाती हैं और प्रताड़ित होती रहती हैं। 

शिक्षा के क्षेत्र में बहुत सुधार आया है ,आज माता-पिता खुद अपनी बेटियों को पढ़ाना लिखाना चाहते हैं ताकि भविष्य में वह आर्थिक तंगी से ना गुज़रे और पूर्ण तरीके से स्वतंत्र हो। सरकार ने कन्याओं के लिए कई शिक्षा अभियान चलाए हैं जैसे- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर आज भी कई परिवार ऐसे हैं जहाँ लड़कियों का पढ़ना लिखना अशुभ माना जाता है, उनकी प्रतिक्रिया आज भी नहीं बदली। वे मानते हैं कि लड़कियों की शिक्षा- दीक्षा हो जाने से उनके पर निकल आते हैं और उन्हें लोक लाज का ध्यान नहीं रहता । वे अपनी मर्यादायें भूल जाती हैं लैंगिक समानता की लड़ाई लड़ते-लड़ते ।

शोषण और बलात्कार जैसे अपमान से अवगत होने वाले महिलाएँ अपने अधिकार की लड़ाई के लिए न्यायालय से आस लगाती हैं, पर उन्हें न्याय के बदले मिलते हैं अनेकों अतरंगी और अपमानजनक प्रश्न, जो उनसे पूछे जाते हैं और उन्हीं को गलत ठहराया जाता है।  पुरुष जाति को सही दिखा कर यौवन और नशे के आगोश में आकर उनके द्वारा किए गए अपराधों पर पर्दा डाला जाता है। कुछ समय बाद वे खुशहाल ज़िंदगी जी रहे होते हैं अपने परिवार के साथ और बेचारी महिला जीवन भर के लिए अपने आत्म सम्मान पर लगे कलंक को लिए घूमती रहती है,  और एक दिन जब वो अपनी लड़ाई लड़ते-लड़ते हार जाती है तो आत्महत्या का सहारा लेती है इस अपमान को दबाने के लिए। फिर उसी समाज को वह सही लगने लगती है ।

शोषण और बलात्कार के बाद महिला सशक्तिकरण का एक और पहलू है वो है असमान वेतन। आज के समय में महिलाएँ वह हर काम कर रही हैं जो पुरुष करते हैं और उनसे और बेहतर तरीके से करती हैं।  फिर भी उनका वेतन पुरुषों की तुलना में कम ही होता है।  उदाहरण स्वरुप एक पुरूष राजमिस्त्री का वेतन एक महिला राजमिस्त्री से अधिक होता है, जबकि काम दोनों के एक है,  मेहनत समान है तो फिर वेतन में यह असमानता क्यों देखने को मिलती है? हॉलीवुड और बॉलीवुड की बड़ी-बड़ी अभिनेत्रियां इस भेद-भाव के खिलाफ आवाज़ उठाई है और बहुत हद तक सफलता प्राप्त की है।

आज कितने जतन के उपरांत महिलाओं को हर क्षेत्र में आरक्षण की सुविधा कानून की तरफ से उपलब्ध कराई गई है । कोई उन्हें उनके अधिकार दे या ना दे वे स्वयं अपने अधिकार के लिए लड़ सकती हैं और जब महिलाएँ सशक्त होंगी देश के तो उसकी आर्थिक और सामाजिक प्रगति को कोई नहीं रोक सकता।


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महिला सशक्तिकरण पर निबंध इन हिंदी (Essay on Women Empowerment in Hindi) प्रारूप ३

फ़रवरी 4, 2022 by डॉ. उमा शर्मा

मनुस्मृति का चिर परिचित श्लोक –

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।। मनुस्मृति ३/५६ ।।

जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नही होता है वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं। (Where women are worshiped, there lives the Gods. Wherever they are not worshiped, all actions result in failure.)

इस बात का संकेत देता है कि प्राचीन काल भारतीय महिलाओं का स्वर्णिम काल था। पुरुष प्रधान व्यवस्था के बावजूद महिलाओं का समाज में सम्मान था, प्रतिष्ठा थी, और उन्हें आगे बढ़ने की पूर्ण स्वतंत्रता थी। अपने आध्यात्मिक ज्ञान और अगाध प्रतिमा से समाज को यह बताने में सक्षम हुई कि वह पुरुषों से किसी भी स्तर पर कम नहीं है। परन्तु मध्यकाल में स्थिति उतनी सुखद नहीं थी। उनकी प्रगति अवरुद्ध रही।


स्वतंत्रता के बाद सरकारी महिलाओं महिला संगठनों आदि के प्रयासों से महिलाओं के लिए विकास के द्वार खुले। उनमे शिक्षा का प्रसार हुआ जिससे उनके आत्मविश्वास में वृद्धि हुई। आज वे राजनीति, समाज-सुधार, शिक्षा, पत्रकारिता, साहित्य, उद्योग, विज्ञान आदि क्षेत्रों में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। एक ओर तो यह परिदृश्य वेहद उत्साहजनक है, परंतु दूसरी ओर आज भी लाखों करोड़ों महिलाएँ गरीबी शोषण एवं उत्पीड़न की शिकार हैं। देश में लाखों परिवार गरीबी में जी रहे हैं, और गरीबी की सर्वाधिक मार इन परिवारों की महिलाएँ झेल रही है।


“एम्नेस्टी इंटरनेशनल (Amnesty International)” द्वारा प्रकाशित के अनुसार भारत में चालीस प्रतिशत विवाहित महिलाओ को महज इस कारण प्रताड़ित किया जाता है कि उनका भोजन या उनके काम पसंद नहीं आए। महिलाओं के सोच में इन बातों का असर इतना ज्यादा है कि कई बार वह खुद हिंसा का समर्थन करने लगती है। लेकिन इन यातनाओ का असर उनके मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। समाज में आज भी सर्वाधिक उत्पीड़न विधवाओं का हो रहा है। युवा विधवाओं में बेसहारा महिलाओं को यदि जीविकोपार्जन का साधन नहीं मिलता तो कई बार वह नैतिक, अनैतिक कार्य करने को विवश हो जाती हैं।

जो ऐसा नहीं कर पाती वह परेशान होकर अक्सर आत्महत्या का रास्ता अपना लेती है। महिलाओं से छेड़छाड़, बलात्कार और कार्यालयों में कार्यरत महिलाओं के अलावा अन्य महिलाओं के यौन उत्पीड़न की घटनाएं भी लगातार हो रही है। उच्चतम न्यायालय ने यौन उत्पीड़न को गंभीरता से लेते हुए कुछ समय पहले सरकार को निर्देश दिया था की वह सरकारी व निजी क्षेत्रों में महिला यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए उचित कानून बनाएं।

सरकार ने महिला उत्पीड़न रोकने संबंधी कानून बनाने के अतिरिक्त, महिला सशक्तिकरण आंदोलन को सुदृढ़ करने के लिए संवैधानिक सुरक्षा के साथ-साथ एक कारगर संस्थागत ढांचा भी खड़ा किया है। महिलाओं और बच्चों के विकास को आवश्यक गति प्रदान करने के लिए १९८३ में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत महिला एवं बाल विकास विभाग का गठन किया गया। १९९२ में स्थापित राष्ट्रीय महिला आयोग को आवंटित कार्य एवं जिम्मेदारियां का काफी व्यापक महिलाओं के अधिकारों की रक्षा से संबंधित तमाम पहलुओं और सशक्तिकरण प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए सभी प्रयासों को इसके दायरे में लाया गया है।आयोग कानून की समीक्षा करता है। महिला अधिकारों के उल्लंघन और कार्यस्थल पर यौन शोषण व्यक्तिगत शिकायतों की जांच करता है, तथा महिलाओं के अधिकारों के संरक्षण के लिए सक्षम अधिकारियों को उपयुक्त कदम उठाने के बारे में सुझाव देता है। इसके अतिरिक्त उन महिलाओं के लिए जो विभिन्न कारणों से अपने परिवारों के पास वापस नहीं जाना चाहती हैं उन्हें समग्र एवं एकीकृत सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए २००१-०२ से महिला अधिकारिता कार्यक्रम शुरू किया है।

गरीब महिलाओं को हस्तशिल्प जैसी गतिविधियों के संचालन के लिए ऋण सहायता उपलब्ध कराने के लिए १९९३ में राष्ट्रीय महिला कोष का भी गठन किया गया है। गरीब महिलाओं को रोजगार के परंपरागत क्षेत्रो जैसे कृषि, पशुपालन, डेरी। मछली पालन, हस्तशिल्प आदि में अद्यतन जानकारी और नवीन कौशल उपलब्ध कराने के एक प्रयास के रूप में एसटीईपी (स्प्रे) कार्यक्रम शुरू किया गया है।

महिला सशक्तिकरण एवं विकास के लिए निःसन्देह सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई गई एवं कई तरह के प्रयास किए गए है। संविधान और कानून में बराबरी का दर्जा दिए जाने के बावजूद नारी को अपनी मुक्ति और राजनीति तथा समाज में उचित स्थान पाने के लिए तब तक संघर्ष करना होगा जब तक कि पुरुष प्रधान समाज को यह एहसास नहीं कराया जाता कि स्त्री भी उन्हीं की तरह हांड-मांस से युक्त एक बुद्धिमान प्राणि है।

आजादी के बाद भारतीय महिलाओं ने अपने विकास में काफी प्रगति की है और भारतीय समाज के निर्माण में महती भूमिका अदा की है। सशक्तिकरण का अभिप्राय सन्ता प्रतिष्ठानों में महिलाओं की साझेदारी से है। यह दु:ख की बात है कि आज भी लोकसभा और विधान सभाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी २०% से ज्यादा नहीं है,जबकि आबादी में उनकी संख्या करीब ५०% है। अतः आरक्षण को समस्या के समाधान के रूप में लेने के बजाय उन्हें मुख्यधारा में लाने की उपाय मात्र समझना ही बेहतर है। ज्यादा अच्छा यह होगा कि स्त्रियों को वस्तुनिष्ठ तौर पर ऐसी सुविधाएं दी जाए जिनके सहारे वे अपने व्यक्तित्व का स्वेछा से निर्माण कर सकें। उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और आजीविका के लिए यदि अधिक से अधिक से अधिक सहायता मिले तो वे अपनी सृजनशीलता से क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती है। अभी तो उनके खुद की समस्या यह है कि उनके व्यक्तित्व पर जो आरोप है उसे पूरी तरह अपने को बचा नहीं पा रही हैं। अतः मुक्ति जरूरी है तभी तो सशक्तिकरण वास्तविक अर्थो में दिखेगा।


आज जल, थल, वायु चहु ओर महिला वर्चस्व दिखाई दे रहा है। परंतु प्रतिशत वर्चस्व नगण्य है। हमारा भारत गांव में रहता है। गांव में महिलाओं की स्थिति सुधरी तो है। परंतु बहुत कम। बदलाव की बहुत आवश्यकता है। आंतरिक दबाव हो या वाहय कारण, जो भी हो अपनी स्थिति के लिए कुछ हद तक स्त्री ही जिम्मेदार है। मानवीकृत बंधन को उसे तोड़ना ही होगा। आत्मविश्वास व इच्छाशक्ति को बढ़ाना होगा। नवसृजन सृस्टि की वही तो जिम्मेदार है। यदि वह इस प्रक्रिया से स्वयं को वंचित कर ले तो मानव सृस्टि अवरुद्ध हो जाए। अपनी उन्नति भला वह क्यों नहीं कर सकती, करनी ही होगी –


बांध लेंगे क्या तुझे यह ये मोह से बंधन सजीले।
जाग तुझको दूर जाना है ।।

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विनम्र अनुरोध: 

तो मित्रों, इस प्रकार महिला सशक्तिकरण पर निबंध हिंदी में (Essay on Women Empowerment in Hindi) प्रारूप १/ समाप्त होता है। हमने पूरी कोशिश की है कि इस निबंध में किसी प्रकार की त्रुटि न हो, लेकिन फिर भी भूलवश कोई त्रुटि हो गयी हो तो आप अपने सुझाव हमें ईमेल कर सकते हैं। हम आपके सकारात्मक कदम की सराहना करेंगे। हम आपके लिये भविष्य में इसी प्रकार महिला सशक्तिकरण पर निबंध हिंदी में (Essay on Women Empowerment in Hindi) की भाँति अन्य विषयों पर भी उच्च गुणवत्ता के सरल और सुपाठ्य निबंध प्रस्तुत करते रहेंगे। 

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