नदियों से लाभ और नुकसान पर निबंध (Nadiyon se Labh aur Nuksan par Nibandh)

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नदियों से लाभ और नुकसान पर निबंध
Nadiyon se Labh aur Nuksan par Nibandh


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प्रस्तावना

विश्व भर को प्रकृति ने अपने बहुमूल्य संसाधनों से भरपूर करके तैयार किया है। इनमें पहाड़-पर्वत, घाटियाँ, सागर, जंगल और वृक्षों के साथ-साथ नदियों का स्थान भी महत्वपूर्ण है। विश्व भर में नदियों की संख्या सैकड़ों में है। लेकिन इनमें से अधिकांश अपने पूरे वेग और स्वच्छता को प्राप्त नहीं हैं। भारत के साथ-साथ अनेक देशों की प्राचीन सभ्यताएं नदी के किनारे ही विकसित हुई हैं। उस समय नदी पास में होने का सीधा लाभ था कि लोगों को पानी की खोज में दूर-दूर भटकना नहीं पड़ता था। ऐसा नहीं कि नदियों से केवल लाभ ही लाभ हैं, कुछ नुकसान भी हैं। आइये जानते हैं क्या हैं नदियों के मुख्य लाभ और नुकसान इस निबंध में- 


नदियों की सुव्यवस्था से लाभ

नदी के सामान्य लाभों से हम सभी परिचित हैं ही, जिनमें नदी का उपयोग एक जल स्रोत के रूप में नहाने, कपड़े धोने, और उन कामों में होता है जिनमें जल की आवश्यकता होती है। वर्तमान समय में नदी का उपयोग पानी पीने के लिये नहीं हो सकता क्योंकि इंसानों ने इन्हें विभिन्न तरीकों से दूषित कर दिया है। इनके अलावा हम नदियों के जल के माध्यम से बिजली बनाते हैं। जिससे कई लोगों को रोजगार भी उपलब्ध हो पाता है।

नदियों के जल से किसान भाई अपने खेतों और फसलों की सिंचाई भी कर पाते हैं। यह नदियों का महत्व दर्शाता है। बाँध बनाकर नदियों के जल को संचित करके उसे आवश्यक समय के लिये उपयोग में लाया जाता है।


नदियों की अव्यवस्था उत्पन्न होते नुकसान 

नदियों से जो नुकसान होते हैं वे मूल रूप से हमारे द्वारा पैदा की गई अव्यवस्था और प्राकृतिक आपदाओं के परिणाम होते हैं। अन्यथा नदियाँ तो स्वयं में प्रकृति की ओर से उपहार हैं। इंसानों ने लंबे समय तक नदियों को अपने फायदों की पूर्ति के लिये उपयोग तो किया है परंतु उनका ठीक से ख्याल नहीं रखा। बल्कि नदियों को प्रदूषित और गंदा ही किया है। 

नदियों की क्षमता उनके बहते जल के साथ-साथ अप्रतिम सौंदर्य भी है। इससे कई सैलानी नदियों की सैर करने और दर्शन करने आते हैं। जिससे आसपास रह रहे लोगों को भी व्यापार में मुनाफा होता है। नदियाँ को स्वच्छ और साफ बनाने के लिये केवल इतना ही आवश्यक है कि इंसान उनसे थोड़ी दूरी बनाएं। और उनका उपयोग नहाने और कपड़े धोने जैसे कार्यों में न करें।


नदियों का महत्व भौगोलिक और सांस्कृतिक परिपेक्ष्य में 

भारत की भौगोलिक दृष्टि में नदियाँ अपने मार्गों से निरंतर बहती हुई सागर के अथाह स्रोत में गिरती रही हैं। किंतु आधुनिक समय में इनकी रफ्तार में और जल की मात्रा में कमी अवश्य आई है। हमारे देश में कई ऐसी नदियाँ अब लगभग सूख सी गई हैं। हमारी पवित्र गंगा और यमुना नदी आपस में मिलते हुए प्रयागराज में सरस्वती नदी से संगम करती हैं। इन सबका अपना एक सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है।

सांस्कृतिक रूप से भारत में हमेशा से नदियों को माँ समान माना जाता है। क्योंकि वे हमारे जीवन की अहम आवश्यकता को पूरा करती हैं। गंगा स्नान का भी अत्यंत महत्व है। प्राचीन पुस्तकों में कई नदियों का अद्भुत वर्णन पढ़ने को मिलता भी है। इनमें गंगा, यमुना सरस्वती के संगम और गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, गण्डक, ब्रह्मपुत्र आदि का उल्लेख मुख्य रूप से है।


नदियों को पुनरज्जीवत करने का प्रयास

भारतीय सरकार भी देश की कई मुख्य नदियों, जिनमें गंगा और कावेरी मुख्य रूप से शामिल हैं, के पुनरुत्थान के लिये सराहनीय कदम उठा रही हैं। कुछ NGOs और निजी संस्थाएं भी इसके लिये अपने प्रयासों को निरंतर बढ़ा रही हैं।

हाल में नदियों को आपस में जोड़े जाने के कयास भी लग रहे हैं। सरकार मानती है कि नदियों को जोड़ने का फायदा यह होगा कि निम्न जल स्तर वाले क्षेत्र को आसानी से उचच जल स्तर वाले क्षेत्र से जल पहुँचाया जा सकेगा। इस संबंध में कुछ अध्ययनकर्ता कहते हैं कि ऐसा करने से जल में जैविक विविधताओं के कारण पर्यावरण के सिस्टम पर विपरीत प्रभाव दिखाई दे सकता है। इस संबंध में कोई पुख्ता हल अभी नहीं आया है।


उपसंहार

नदियों के महत्व और आवश्यकता को कोई भी नकार नहीं सकता है। पर्यटन के तौर पर भी ये अपना अहम स्थान रखती हैं। हिमालय और विंध्य जैसे पर्वतों से निकलने वाली ये नदियाँ विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों से होते हुए उन्हें पोषित भी करती हैं। इसीलिये तो पूर्वजों ने नदियों का गान पुराणों और कथाओं में किया है। नदी प्रकृति का अभिन्न हिस्सा है। इसके अभाव में प्रकृति की सुंदरता फीकी पड़ जाएगी। इसीलिये वर्तमान में हम इस बात को समझ भी रहे हैं कि कुछ कदम उठाकर हम इसमें अपना योगदान दे सकते हैं। 

-|| धन्यवाद ||- 

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-|| जय हिंद ||-

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