पेड़ की आत्मकथा पर निबंध (Ped Ki Atmakatha Essay In Hindi)

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पेड़ की आत्मकथा पर निबंध
Ped Ki Atmakatha Essay In Hindi
वृक्ष की आत्मकथा पर निबंध


🌳 पेड़ की आत्मकथा पर निबंध (Ped Ki Atmakatha Essay In Hindi) पर यह निबंध class 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए और अन्य विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए लिखा गया है।


प्रस्तावना

इस पृथ्वी पर पेड़-पौधे प्रकृति के आकर्षक और उपयोगी संसाधन हैं। पेड़ों से हमें कितनी ही चीजें प्राप्त होती हैं। इस समय भी हम केवल पेड़-पौधों द्वारा वायुमंडल में छोड़ी जा रही ऑक्सीजन गैस के कारण ही जीवित हैं। एक प्रकार से कह सकते हैं कि हमारे जीवन का आधा हिस्सा पेड़-पौधों के पास है। दूसरी तरफ पेड़-पौधे भी हमारे द्वारा निष्कासित की जा रही कार्बन डाइ ऑक्साइड से जीवित रहते हैं। पेड़ पौधों में भी जीवन होता है।

यह बात आज हम समझते हैं। भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु ने अपने यंत्र कैस्क्रोग्राफ से यह सिद्ध किया है कि पेड़-पौधों में भी संवेदनशीलता व जीवन पाया जाता है। इसीलिये इस निबंध में हम पेड़-पौधों के दृष्टिकोण से ही उनकी कथा लिखने का प्रयास करेंगे।


मैं पेड़ हूँ- मेरा अस्तित्व

नमस्कार मैं पेड़ हूँ। मेरी प्रजाति इस पृथ्वी पर बहुत ही अधिक समय से मौजूद है। इंसानों से पहले भी मेरा अस्तित्व था। उस समय विभिन्न तरह के भयानक और रोचक जानवर विचरण करते थे। तुमने डायनासोर के संबंध में भी सुना ही होगा। वे आकार में बेहद विशाल और डरावने होते थे। उनमें से कुछ माँसाहारी व शाकाहारी भी होते थे। उन्हें मैंने प्रत्यक्ष देखा है। वे सभी जानवर मेरी पत्तियों व फलों को खाकर भी अपना गुजारा करते थे। हम परस्पर ऑक्सीजन व कार्बन डाइ ऑक्साइड का आदान-प्रदान के द्वारा जीवित रहते थे।

समय के साथ धीरे-धीरे कई प्राणी व जीव जंतु विलुप्त होते गये। डायनासोरों का अंत उल्का पिंड के धरती पर गिरने के कारण हुआ। यह अत्यंत भयावह आपदा थी। इसके बाद भी चीजें अपने आप मंद गति से स्थिर व ठीक होती गईं। जब इंसान आये तो वे बिल्कुल अज्ञानी थे। वे मेरे या धरती के बारे में तो क्या अपने बारे में भी कुछ भी नहीं जानते थे। ये इंसान आदिमानव कहे जाते हैं। इन्होंने भी अपना विकास धीरे-धीरे किया। आग बनाई, पहिला बनाया, दीवारों पर कई चित्र बनाए और अपनी सुरक्षा के लिये हथियार भी बनाए। ये मानव मेरे फलों और कंदमूल व पशुओं के माँस से अपना गुजारा करते थे। 

आज इंसान अत्यंत विकसित हो चुके हैं। पर मुझे स्मरण है कि वे कभी ऐसे भी थे कि मेरी छाल व पत्तियों द्वारा अपने शरीर के ढकते थे। मैं तब भी मौजूद था और अब भी। हालांकि पहले की अपेक्षा सौ गुना और सौ से अधिक तरीकों से अब मुझे काटा और प्रताडित किया जाता है। अपनी भूख और सुरक्षा के लिये इंसानों ने मेरे फल और लकड़ियों का सहारा लिया था।


मैं प्रकृति का उपहार हूँ

मैं प्रकृति द्वारा बनाया गया एक महत्वपूर्ण संसाधन हूँ। मैं इंसानों की तमाम जरूरतों को पूरा करता हूँ। इसीलिये इंसानों के लिये एक उपहार भी हूँ। मेरे मौजूद होने से वातावरण में स्वच्छ वायु का प्रसार होता है जो एक इंसान के अच्छे स्वास्थय के लिये भी अत्यंत उपयोगी है। इसके अलावा पेड़ों से छाया व लकड़ी प्राप्त होती है। लकड़ी से इंसान विभिन्न फर्नीचर व घर आदि भी बनाते हैं।

पहले के समय में पेड़ों की संख्या अनगिनत(बहुत अधिक) थी। सैकड़ों वन क्षेत्र पूरी पृथ्वी पर हर देश व सभ्यता में फैले हुए थे। आज भी कुछ ऐसे वन क्षेत्र मौजूद है परंतु पहले की तुलना में यह संख्या बहुत ही कम हो गई है। इसका मूल कारण इंसानों द्वार किया गया निरंतर और अनावश्यक दोहन ही है। इंसानों अपने लालचों की पूर्ति करने के लिये हमें नष्ट कर रहे हैं।


संतुलन का आधार- पेड़-पौधों का विस्तार

पहले के समय में मनुष्य को इतना ज्ञान नहीं था कि वह अपना व इस ग्रह का भला बुरा समझ सके। वह केवल अधिकाधिक खाने व अपनी सुरक्षा में ही समय बिताता था। अब के हालात और है। इंसान इस संबंध में जान भी रहे हैं कि हम पेड़ पधों को सुरक्षित करके ही सभी का कल्याण हो सकता है। केवल पेड़ ही नहीं अन्य संसाधन भी उतने ही उपयोगी हैं।

हम पेड़ अपने तनों, जड़ों व अन्य हिस्सों में इस पृथ्वी के राज छिपा कर रखते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि हम वायु, मिट्टी, जल आकाश आदि के साथ हर समय जुड़े रहते हैं। आजकल इंसान नई तकनीकों से हमारी आयु का भी पता कर सकते हैं। वैसे हमारी अंदाजन आयु जानने का एक माध्यम हमारे तनों के वलय को गिनना भी है। जैसे-जैसे व्यक्ति के पास खेलने के व मनोरंजन के नए साधन आते जा रहे हैं वह मुझसे दूर ही हो गये हैं। अब तो छोटे बच्चे भी मेर पास आने में व मेरी छाया में बैठने से कतराते हैं।


उपसंहार

मैं आशा करता हूँ कि एक पेड़ की आत्मकथा सुनना रोमांचक रहा होगा। ईश्वर के इस सृष्टि में कई सारे प्राणियों को जीवन जीने का अवसर मिलता है। चाहे वह पेड़ पौधों हों या इंसान या अन्य जीव जंतु। सभी अपने अपने समयानुसार इस पृथ्वी को छोड़ भी देते हैं। इसीलिये सभी के साथ समन्वय रखकर ही एक आदर्श जीवन जीना साकार हो सकता है। इसे साकार करने के लिये आप सभी इंसान अपनी ओर से प्रयास कर सकते हैं। छोटे से छोटा एक-एक प्रयास भी पूरी प्रकृति को लाभ देगा। उदाहरण के लिये अपने घर  पास मेरी भाँति किसी पेड़ को लगाएँ, पानी दें व उसकी सुरक्षा करें।

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विनम्र अनुरोध: 

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