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महात्मा गाँधी और उन के विचार
🌈 महात्मा गाँधी और उनके विचार पर यह निबंध class 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए और अन्य विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए लिखा गया है।
आज के युग की प्रासंगिकता है कि हमारे नवयुवकों को जानना चाहिए कि गाँधी जी का स्वरूप क्या है। रोमा रोलाँ अपनी पुस्तक ‘महात्मा गाँधी- जीवन और दर्शन के प्रथम पेज पर लिखते हैं, सरल, शिशु सा स्वभाव, शांत काली आँखें अदना सा सोते हैं कम, काम करते हैं लगातार। प्रियसेन ने जब उन्हें पहली बार अफ्रीका में देखा तो उन्हें असीसी संत फ्रांसिस की याद आ गई।
बार बार प्रश्न उठा यही है वो व्यक्ति जिन्होंने तीस करोड़ जनों को जगा दिया है, कँपा दिया है ब्रिटिश साम्राज्य को। और आरम्भ कर दिया है अतुलनीय सशक्त आंदोलन।
गाँधी आज भी हमारे भीतर मौजूद हैं, जीवित हैं क्योंकि गाँधी एक विचार हैं और विचार कभी खत्म नहीं होता, विचार तो अमर होता है। करूणा को जब सिद्धार्थ ने आत्मसात् किया तो वो भगवान बुद्ध बन गए।प्रेम को जब महावीर ने अपनाया तो वे जैन धर्मावलम्बी स्वामी बन गए। करूणा और प्रेम दोनों को ब गाँधी जी ने आत्मसात् किया तो वे राष्ट्रपिता बन गए। महात्मा जिन्होंने अपनी सत्ता को विश्व सत्ता के साथ एकाकार कर दिया।
महावीर त्यागी अपनी पुस्तक हँसते आँसू पेज 67 पर लिखते हैं कि मैं गाँधी जी का मुँह लगा सेवक था। ईर्ष्यावश किसी ने मेरी चुगली कर दी। प्रार्थना के सभा की समाप्ति पर कठोर चोट पहुँचाते हुए कहा कि- कितनी शर्म की बात है कि स्वयं सेवक प्रार्थना सभा में कुलियों को आने से इसलिये रोकते हैं कि उनके कपड़े गंदे हैं। मैं ठगा सा रह गया। काटो तो खून नहीं। मैंने ऊँची नीची सुनानी शुरु कर दी। बिना पूछताछ किये कैसे इल्जाम लगा दिये। राम के मंदिर में झूठ क्यों बोला? मैं बोलता गया वे हँसते गए। कितने निर्मम थे गाँधी जी। दूसरे दिन प्रार्थना सभा में गाँधी जी ने मुझसे कहा- जो रूठकर दूर खड़ा है। मैं प्रायश्चित करूँगा। आज त्यागी नाराज हो गया है। रूठकर दूर खड़ा है। कहता है कि तू राम के मंदिर मे झूठ बोलता है। कल वो मेरे लिये जिन्दा रहने की बात की थी, आज मेरे लिये मरने की नौबत कही। गाँधी जी उपवास तो नहीं करेंगे। बिना तहकीकात किये झूठ बोला, महात्मा हूँ ना मुझे प्रायश्चित्त करना चाहिए। जब महात्मा होकर ऐसा पाप कर सकता हूँ तुम लोग भी जरूर करते होगे। आओ हम सब मिलकर प्रतिज्ञा करें न तो बुरा देखें न बुरा सुनें, न बुरा कहें। इसी सत्य विचार के प्रतिनिधित्व करने वाले गाँधी जी के तीन बन्दर कहलाए।
राष्ट्र परमेश्वर का विग्रह रूप है। उसका पिता सिर्फ सत्य हो सकता है कहना युक्ति संगत होगा कि गाँधी जी सत्य स्वरूप थे। सत्य स्वरूप बनने के लिये उन्होंने कोई विशेष प्रयत्न नहीं किया, मात्र शुद्ध सत्य का बीजवपन किया था। समय आने पर सत्य बीज वृक्ष बन गया। हम भी सत्य धारण करते हैं परन्तु वैसा रूप नहीं बन पाते क्योंकि अशुद्ध सत्य को धारण करते हैं। इसीलिये मिलावट का रूप तैयार होता है।
बाद में जो लड़ाई लड़ी और स्वाधीनता प्राप्त की, वह अहिंसा और सत्य के बल पर की। वे सभी धर्मों का समान रूप से आदर करते थे। उनकी दृष्टि में सभी धर्म सत्य के वाहक हैं। जिस प्रकार सबी नदियाँ पर्वतों से निकल कर सागर की ओर उन्मुख होती हैं। ठीक उसी प्रकार सभी धर्म के लोग ईश्वर की ओर ही जाते हैं। रोमा रोला अपने पुस्तक के पेज 19 पर लिखते हैं कि सन 1920 में जब एक अंग्रेज पादरी ने उनसे पूछा कि आपको किस ग्रन्थ ने प्रभावित किया है। गाँधी जी ने उत्तर दिया- न्यू टेस्टामेंट ने। 1893 में सविनय अवज्ञा नीति की पहली लक पर्वत के ऊपर दिये गए प्रभु ईसा के धर्मोपदेश में मिली।
गुलामियत के जंजीर में जकड़े भारत की मुक्ति के लिये लोग सन् 1907 में पुस्तकों से प्रेरणा ग्रहण करते थे। ऐसे समय में महात्मा गाँधी आए और भारत के करोड़ों गरीबों के दरवाजे पर उन्हीं की भाषा में बात करने एवं हमदर्द बनने की गाथा काल्पनिक नहीं है अपितु यह एक सच्ची बात थी। पुस्तकों का उदाहरण नहीं। इसी से उनको महात्मा की उपाधि दी गई। सत्य प्रेम के स्पर्श से छिपा हुआ सत्य प्रेम उठी।
गाँधी जी कहते हैं- हिंसा के अपेक्षा अहिंसा कई गुना अच्छी है। यदि कायरता व हिंसा में से किसी एक को चुनना हो तो मैं हिंसा को चुनूंगा। दूसरों को न मारकर स्वयं को मारने की शक्ति जिसके अन्दर है उसी की साधना करता हूँ। क्षमा उसी को शोभती है जिसके अंदर ताकत हो। क्षमा उसको क्या शोभेगी जो विषहीन गरल दन्त हो।
जैन धर्म में नियम है कि अगर कोई व्यक्ति हिंसा करता है तो उसे प्रायश्चित्त करना पड़ता है। परन्तु गाँधी जी दूसरों के लिये प्रायश्चित्त करते थे “आत्मनो मोक्षार्थ जगत हिताय च” शास्त्र का उक्त कथन गाँधी पर अक्षरश: सत्य साबित होता है।
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