आत्म बोध
अमूल्य निधि है समय तुम्हारा
व्यर्थ में कभी गॅवाना मत
दिव्य विभूति है परिश्रम तुम्हारा
खाक में मिलाना नही
समेट लो दुख के लहरों को
खुशियों के आँचल में
रोक लो राह के कॅटीली हवाओं को
बांध लो बंधन,बट वृक्ष के छाँव में
खाली हो खुद का प्याला
पिलाओगे क्या दूसरों को
भर लो आत्म -प्याले को
लबा लब आत्म ज्ञान से
छलके जो बूँद प्याले से
छिटके जो बूँद दूसरों पर
खिल उठे चेहरे ,कुम्हलाए हुए दूसरों के
सिंह पुरुष शावक हो तुम
पहचानो निज की शक्ति को
जाग्रत आत्म स्वरूप हो तुम
फैलाओ देश की संस्कृति को
लीले जो समुद्र को
चिनगारियों की क्या विसात
बड़वानल बन जाना तुम
रखना ध्यान इतना बस
लग जाए न आग खुद के घर में
बादल बन बरसना तुम
वंचित रह न पाए कोई
मिलकर प्रयत्न करना सब।