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डॉ0 भीमराव अंबेडकर पर हिंदी निबंध
Essay on Dr. Bhimrao Ambedkar in Hindi
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प्रस्तावना (Introduction)
डॉ0 भीमराव अंबेडकर को भारत ही नहीं पूरे विश्व के लोग अच्छे प्रकार से जानते हैं। हमारे देश के संविधान निर्माण में इनका सर्वाधिक योगदान रहा है। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इन्होंने अपने जीवन में जाति सबंधी विभिन्न कष्टों को सहन किया और देश को उनसे उबरने में सहयोग किया।
बाबा साहब का मानना था कि छूआछूत, जाति प्रथा, बाल विवाह तथा ऐसी ही अन्य कुरीतियाँ हमारे विकास के मार्ग में अवरोध पैदा करती हैं।
बाबा साहब का अध्ययन इतना विस्तार पूर्ण था कि इनके पास दर्जनों डिग्रियाँ थीं। इस निबंध में हम बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के जीवन और योगदान के संबंध में ही अच्छे प्रकार से जानेंगे।
बाबा साहब का जन्म, शिक्षा एवं आरम्भिक जीवन (Bhimrao Ambedkar’s birth, education and initial life)
भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के महु नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम रामजी सकपाल तथा माता का नाम भीमाबाई था। पिता एक सैनिक स्कूल में प्रधानाध्यापक को तौर पर कार्य करते थे एवं माता एक गृहिणी थीं।
इनका विवाह कम उम्र में ही वर्ष 1905 में रमाबाई के साथ हो गया था। पिता के साथ किसी कारणवश इन्हें महाराष्ट्र आना पड़ा परंतु इनकी शिक्षा में कोई व्यवधा नहीं आया। 16 साल की उम्र में इन्होंने मैट्रिक(हाईस्कूल) उत्तीर्ण किया।
इसके बाद मुंबई के ही एल्फिस्टन कॉलेज से इन्होंने बी0ए0 उत्तीर्ण किया। पढ़ाई में मेधावी और दक्ष होने के कारण इन्हें बदौड़ा के महाराज की ओर से छात्रवृत्ति भी प्रदान की गई।
इन सबके अलावा भीमराव अंबेडकर के स्कूली दिनों में उन्हें जातिगत तौर से काफी प्रताडित भी किया जाता था। तथाकथित तौर पर निम्म कही जाने वाली म्हार जाति के होने के कारण इन्हें नल से हाथ लगाकर पानी पीने पर भी रोक थी। पाठशाला में इन्हें अन्य बच्चों के साथ भी बैठने नहीं दिया जाता था। इस सबका प्रभाव बाबा साहब पर पड़ा और इन्होंने इसके खिलाफ कड़ी आवाज भी उठाई।
विदेश में उच्च शिक्षा ग्रहण तथा विभिन्न समाज सुधार कार्य(Higher Education in Foreign and Social Reformation Works)
गायकवाड महाराज के पास कुछ समय सेना में सेवा करने के बाद इन्होंने आगे की पढ़ाई के लिये विदेश जाने की इच्छा जताई। इसमें महाराज ने आर्थिक तौर पर पूरा सहयोग दिया। अमेरिका के कोलम्बिया विश्वविद्यालय से वर्ष 1915 ई0 में एम0 ए0 की डिग्री हासिल की।
इन्होंने निरंतर अध्य्यन जारी रखते हुए पी0ए0डी0 की डिग्री भी हासिल की और ब्रिटेन जाकर लंदन इकॉनिमिक्स स्कूल से मास्टर ऑफ साइंस भी पूर्ण किया। अपने करियर को इन्होंने कानून क्षेत्र में बनाने का निर्णय लिया जिसके लिये बाए एट लॉ भी पूरा किया।
जब ये वापस भारत आए तो पहले तो इन्होंने वकालत में अपना पेशा प्रारंभ करने का सोचा परंतु जाति के नाम पर भेदभाव खत्म नहीं हुए थे। लोग इनसे जाति के नाम इन्हें अपना केस देने से ही कतराते थे।
बंबई के एक कॉलेज में प्रोफेसर के पद पर भी इन्होंने ऐसी ही परेशानियाँ झेलीं। आखिरकार उन्होंने इसके खिलाफ आवाज बुलंद करने का निर्णय लिया। कानूनी तौर पर दलित के लिये आरक्षण और जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिये कानून की माँग करने लगे।
इसी कड़ी में वर्ष 1927 में इन्होंने बहिष्कृत भारत नाम की पत्रिका को सम्पादन आरम्भ किया। भीमराव अंबेडकर एक ही समय पर दो-दो मोर्चों पर लड़ रहे थे- अंग्रजों से आजादी का संघर्ष और शोषित वर्ग के अधिकारों के लिये लड़ाई।
दलितों को मंदिर में प्रवेश से वंचित रखने के विरोध में भी वर्ष 1930 में हजारों दलित लोगों के साथ मिलकर सत्याग्रह किया। पुलिस बस के हिंसात्मक दमन के बावजूद ये अपनी माँगों से एक इंच पीछे नहीं हटे और अंत में विजयी भी हुए। उस घटना के बाद लोग धीरे धीरे इन्हें बाबा साहब के नाम से जानने लगे।
साल 1935 में एक इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना करके इन्होंने बंबई से स्थानीय निकाय के चुनावों में हिस्सा लिया। जिसमें इसके पार्टी 15 में से 13 सीटें पर विजयी हुई।
भीमराव अंबेडकर का संविधान में योगदान(Bhimrao Ambedkar’s contribution in Indian Constitution)
देश की आजादी के संघर्ष में भी बाबा साहब लंबे समय से सक्रिय रहे। लंदन में होने वाली गोलमेज सम्मेलनों में भी इन्होंने हिस्सा लिया। हालांकि भीमराव अंबेडकर गाँधी जी और अन्य कांग्रेस नेताओं से विभिन्न विषयों पर मतभेद रखते थे। परंतु इन्होंने हर किसी अपनी विचार धारा से आकर्षित और स्तब्ध किया।
जब देश को 1947 में आजादी मिली तो इन्हें देश के विधि मंत्री के तौर पर नियुक्त किया गया। देश के संविधान निर्माण के लिये जो सभा गठित की गई उसकी प्रारुप समिति का अध्यक्ष भी बाबा साहब को चुना गया। हमारे संविधान में नागरिकों के मूल अधिकार, मूल कर्तव्य, नीति निदेशक सिद्धान्त, संशोधनों की संभावना तथा अन्य कई अहम पहलू मौजूद हैं -ये सभी इसे किसी भी देश का सबसे बड़ा लिखित संविधान बनाते हैं।
बाबा साहब ने संविधान के अनुच्छेद 32 को संविधान का ह्रदय एवं आत्मा कहा है। इस अनुच्छेद में नागरिक के मौलिक अधिकारों का वर्णन है जिसे बाबा साहब ने अहम अंग माना है।
बाबा साहब का पुस्तकें व रचनाएं(Baba Shahab’s Books and Writings)
वैसे तो बाबा साहब ने अपना सबसे बड़ा योगदान संविधान के निर्माण में दिया है। परंतु इसके साथ ही उन्होंने कई ऐसे विषयों पर पुस्तकें भी रचीं जो देश के आम और शोषित जन से की मौलिक समस्याओं से जुड़ी हुईं हैं।
इनकी प्रमुख पुस्तकों में- भारत का संविधान, जाति विच्छेद, हिन्दू धर्म का दर्शन, शूद्र कौन थे, बुद्ध और उनका धर्म, राज्य और अल्पसंख्यक, भारत में जातियाँ, अंबेडकर का भारत, रुपये की समस्या, पाकिस्तान पर विचार, कार्ल मार्क्स और बुद्ध, हिन्दू धर्म की पहेलियाँ आदि हैं।
इसके अलावा बाबा साहब ने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं भी सम्पादित कीं तथा सैकड़ों की संख्या में अपने उद्बोधन भी दिये।
निष्कर्ष(Conclusion)
डॉ भीमराव अंबेडकर का जीवन बहुत सारी कठिनाइयों व विपरीत परिस्थितियों से भरा हुआ था। उन्होंने बहुत अधिक अपमान सहा तथा उसके विरुद्ध आवाज भी उठाई। बाबा साहब के आवाहन पर लाखों की संख्या में गरीबी और अपमान का कड़वा घूँट पीने वाले दलितों व शोषितों को भी हिम्मत मिली। उनकी ओर से हमें दिया गया सबसे सुंदर उपहार हमारा संविधान आज भी हमारा मार्ग प्रशस्त करता है। इसीलिये उनका जीवन और उनके विचार आज भी हमारे लिये प्रेरणा के स्रोत हैं।
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