एकता (देश और धर्म)

Loading

एकता (देश और धर्म)

है एक तू और एक मैं 

फिर क्यों ये धर्म अनेक हैं ,

समाज और संसार में 

सभी के अपने विवेक हैं ।

मैं हिंदू हूँ तू मुसलमान है 

मेरा मंदिर तो तेरा मस्जिद है 

मेरी गीता तो तेरा कुरान है 

मेरा शमशान तेरा कब्रिस्तान है ।

है देश कई और भेष कई 

पर हम सब इंसान हैं ,

और जिसमें कर्म और काबिलियत है 

वही सबसे बड़ा विद्वान है।

|| क्षमाश्री दुबे ||

🥳 अगर आपको देश और धर्म पर लिखी यह कविता अच्छी लगी हो तो इस “एकता (देश और धर्म)” को अपने दोस्तों के साथ शेयर करें ।

Leave a Comment