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आधुनिक शिक्षा प्रणाली पर निबंध
Essay on Modern Education System in Hindi
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शिक्षा तो मनुष्य को दूसरा जन्म देती हैं। माँ की कोख से तो केवल शरीर जन्म लेता है। व्यक्तित्व का जन्म तो शिक्षा ही प्रदान करती है। इस बारे में सोच विचार करने की जरूरत निहायत सामयिक है।
शिक्षा को समझना हो, इसे परिमार्जित, परिष्कृत, दायित्वपूर्ण व निरंतर उपयोगी बनाना हो तो पाँच बातों पर ध्यान देना होगा। इनमें पहला है माता पिता या अभिभावक। दूसरा है- शिक्षक, तीसरा- विद्यार्थी, चौथा- पाठ्यक्रम तथा पाँचवा है- घर परिवार व शिक्षण परिसर का वातावरण। इन पाँचों को शिक्षा के पंचशील या पाँच तत्व कहा जाता है। जिस तरह से क्षिति, जल, पावक, गगन, व समीर से अपना यह शरीर बना है। ठीक उसी प्रकार इन पाँच तत्वों से यह समूची शिक्षण व्यवस्था बनी है। इनमें से किसी को भी इधर उधर करने से असंतुलित करने से इस ढाँचे के ढहने की संभावना पूरी-पूरी बन जाती है।
शिक्षण-प्रक्रिया का आरम्भ माता पिता से होता है। माता पिता यदि सर्वगुण सम्पन्न होंगे, उनके व्यक्तित्व में पवित्रता व प्रखरता होगी तो उसकी आभा संतान में भी आएगी। माता पिता, शिक्षा व्यवस्था की आधारशिला रखते हैं। शिक्षक उसी को आगे बढ़ाते हैं। यदि आधार शिला कमजोर, नींव की ईंटें मजबूत नहीं हैं तो भला उन पर बना भवन कितने दिनों तक टिका रह सकेगा, परन्तु आधारशिला भी तब तक अधूरी व अपूर्ण बनी रहेगी जब तक शिक्षक पूरा न करे। शिक्षक की सबसे महत्वपूर्ण योग्यता है उसका प्रेरक व्यक्तित्व, अपने विद्यार्थियों से संवाद की क्षमता। शिक्षक को ऐसा संवेदनशील व संगठन कुशल होना चाहिए जिससे उसके विद्यार्थी उच्चस्तरीय विचारों एवं उच्च भावों के धागों में गुँथे रहें। इन योग्यताओं के साथ शिक्षक को अपनी कक्षा में सकारात्मक प्रेरक ऊर्जा से परिपूर्ण वाला वातावरण बनाने में कुशल होना चाहिए।
शिक्षण व्यवस्था एवं शिक्षण प्रक्रिया का तीसरा तत्व विद्यार्थी है। यही समूचे शिक्षण आयोजन की धुरी है कोई भी विद्यार्थी बुरा नहीं होता। बस उसकी मौलिक विशेषताओं की परख की जानी चाहिए। प्रेरणा और प्रोत्साहन दोनों ही विद्यार्थी में आत्मविश्वास की वृद्धि करते हैं। विद्यार्थी जीवन की अवधि जानने, सीखने, अनुभव करने के साथ परिष्कृत व्यक्तित्व गढ़ने की है। इसलिये सभी का सहयोग लेकर विद्यार्थियों को अपने इस दायित्व को निभाना चाहिए।
चौथा तत्व पाठ्यक्रम शिक्षक व विद्यार्थों के बीच सेतु का कार्य करता है। पाठ्यक्रम का मूलभूत उद्देश्य विद्यार्थियों में उनकी आयु एवं योग्यता के अनुरूप निर्धारित विषय की समझ व्यापक दृष्टिकोण विशेषज्ञता उत्पन्न करना उन्नत मौलिक, उदार, सहिष्णु, सद्गुण सम्पन्न एवं देश व समाज के प्रति दायित्वपूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण भी करना है। इस पाठ्यक्रम की प्रक्रिया से जुड़ा हुआ एक अतिशय महत्व का सच है- मूल्यांकन की प्रक्रिया। प्राय: मूल्यांकन का आधार विद्यार्थी की स्मरणशक्ति तक सीमित रह जाता है जबकि मूल्यांकन की कसौटी विद्यार्थी के व्यक्तित्व चिंतन, चरित्र व्यवहार के साधन, निर्धारित विषय की मौलिक समझ, उसकी शोधपूर्ण दृष्टि का विषय का व्यवहारिक ज्ञान होना चाहिए।
संपूर्ण शिक्षा प्रक्रिया का अंतिम एवं पाँचवा तत्व वातावरण है। इस वातावरण शब्द की व्यापकता में परिस्थिति, परिवेश, पर्यावरण के साथ विचार शैली व जीवन शैली भी समाविष्ट है। शिक्षा के लिये वातावरण वही उपयुक्त है जहाँ विद्यार्थियों के बीच किसी भी प्रकार का भेदभाव बिलकुल भी अनुभव न हो। सर्वत्र एक सुरम्य सौम्यता होनी ही चाहिए।
ककृते हैं- अमेरिका के दिवंगत राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने अपने बच्चे को स्कूल भेजते समय प्रधानाध्यक के नाम एक पत्र लिखा था- “उसे पुस्तकों की अद्भुत दुनिया के बारे में तो बताइये लेकिन उसे आकाश में उड़ते पक्षियों, धूप में फिरती मधुमक्खियों, हरी पहाडियं पर खिले फूलों के बारे में भी जानने की जिज्ञासा जगाइए। स्कूल में उसे सिखाइये कि असफल होना बेईमानी करने से ज्यादा सम्मान जनक है। उस सिखाइये कि वह अपने बल व बुद्धि का अधिकतम मूल्य लगाने पर कभी भी अपने ह्दय और आत्मा की कीमत मत लगाए”।
उपरोक्त पंचशील तत्वों का महत्व समान है। यदि शिक्षा प्रणाली को मानव हित, देशहित में उपयोगी से उपयोगी बनाना है तो इन सभी पर ध्यान देना होगा।
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