तू रस का सागर है, मैं रस की प्यासी धारा ।

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तू रस का सागर है, मैं रस की प्यासी धारा

तू रस का सागर है, मैं रस की प्यासी धारा ।
तू रसिक शिरोमणि, मैं अतृप्त प्यास।।
तू करुणा का सागर, मैं अकरुण अट्टहास ।
तू अमृत वर्षण, मैं मरूभूमि रेगिस्तान ।।
तू प्रबल दया का सागर है, मैं दुर्बल निःश्वास ।
तू दयालु दीन बंधु, मैं दीन हीन दास ।।
तू पालनहार तारनहार, मै पातकी निराधार ।
हजारों ख्वाहिशें हैं तो बन्दिसें भी हैं हजार ।।
तू तो सुनामी है, सुधा रस सागर है ।
तोड़ तटबंध करते क्यों नहीं आत्मसात।।
मुझे तुझ पर है अखंड विश्वास।
तू रस का सागर है, मैं रस की प्यासी धारा।।

रामनवमी एवं महानवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

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