माटी

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माटी

कह दे उनसे,
हम भी कुछ है,जाने तो वे l
हम,हमारी माटी संजीवनी
एक शरीर,एक प्राण है
चंदन बन भाल विराजे
इस माटी को छुए जो,दैत्य दावानल बन जाए वे l
कह दे उनसे……….
हम भी…….
अनेक है हिमगिरि शिखर
पर,नगीना नागाधिरlज एक है
बसता है बन कर प्राण
हर कण-कण,हर साँस में
उसके शीश मुकुट को छुए जो सहस्त्र विकराल नागराज बन जावे वे l
कह दे उनसे…..
हम भी कुछ हैं…..
तंग हृदय नही है उसका
‘मै ” इतना व्यापक उसका
विश्व कुटुंब समाता है
हाथ बढ़ाकर तो देखो
अमृत तो अमृत
विष भी औषधि वन जाता है l
उसके पग को छुए ,जो कोटि-कोटि पग बन जाए वे l
कह दे उनसे….
हम भी कुछ है,जाने तो वे l

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