संस्मरणात्मक लेख (मुझे ईश्वर में विश्वास नहीं)

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संस्मरणात्मक लेख (मुझे ईश्वर में विश्वास नहीं)

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मुझे ईश्वर में विश्वास नहीं है। सामने बैठे यात्री का वक्तव्य मुझे चकित कर गया। देखने में वे आधुनिक समझदार प्रतीत हो रहे थे। उनका कथन जारी था। लोग कहते हैं कि ईश्वर हर जगह व्याप्त है। मैं नहीं मानता। चारों तरफ गंदगी फैली हुई है। जहाँ देखों वहीं कुरूपता है। क्या विष्ठर में भी सौन्दर्य है। अब तक मैं शान्त थी।  उनका कथन बहुत ही रोचक लग रहा था। अपना मौन भंग करते हुए मैंने कहा- आपका ईश्वर अविश्वास ही आत्मविश्वास है क्या? अपनी दृष्टि को तनिक विस्तार दीजिये, आप पाएंगे, आप एक बड़े आस्थावान है।

संसार में असत्य है कहाँ? किसी भी सत्ता के प्रति सकारात्मक व नकारात्मक दृष्टिकोण का प्रस्तुतिकरण ही उस सत्ता के अस्तित्व को अहसास दिलाता है। थोड़ा मंथन कीजिये कि कोई वस्तु ही न हो तो उसके बारे में सोच कैसा? हमारी सोच उस वस्तु के प्राकाट्य का घोतक है। मेरी बातें सुनकर वे काफी उत्तेजित हो गए। मैंने पूछा- आपका परिचय। मैं इंजिनियर हूँ- ब़डे तटस्थ भाव से उन्होंने उत्तर दिया। फिर तो हम आधुनिक वैज्ञानिक ढंग से ही वार्तालाप करेंगे। अच्छा ये बताइय़े संसार में किसी पदार्थ के महत्व का मापदंड क्या है? प्रत्युत्तर न पाकर मैंने कहा- किसी भी वस्तु की सार्थकता उसकी उपयोगिता पर निर्भर है। यदि कोई पदार्थ हमारे लिये उपयोगी नहीं है तो वह हमारे लिये निरर्थक सिद्ध होती है।

हम क्यों भूल जाते हैं कि ये धरती सिर्फ हमारे लिये नहीं बनी है। नाना प्रकार के प्राणी जीव-जन्तु वनस्पतियाँ हैं, जो जैसा है वैसी है धरती है उनके लिये। उदाहरण के लिये वृक्ष  लिजिये। वृक्ष का भोजन सड़े गले उर्वरक पदार्थ हैं। उसका पोषण किसी और पदार्थ से नहीं हो सकता। कूड़ों के ढेर व गंदे नालियों में पल रहे कीड़े-मकोड़े ही सूकर वमुर्गी के भोज्य पदार्थ बन सकते हैं। सड़े गले माँस व विष्ठा ही गिद्ध श्वान को प्रिय हैं। सुन्दर सलोने मृग शावक ही वन केसरी के आहार बन सकते हैं। सिंह शावक भी तृण को स्पर्श नहीं कर सकता तो भला वनराज कैसे कर सकता है। जलचर मतस्य को भी शस्य-श्यामला धरती में कोई सौन्दर्य नर नहीं आता। उसका आहार तो किसी के प्रिय मत शरीर ही है। वैज्ञानिक को नए-नए अनुसन्धान पर पदार्थ ही पसंद हैं परन्तु एक किसान के लिये उसके हरे भरे खेत की हरियाली। अन्न देवो भव। अन्न ही देवता है। वीतराग मनुष्य के लिये संसार एक मिथ्याजाल, क्षण भंगुर मृगतष्णा है। आत्मानुसंधान ही जीवन का लक्ष्य है।

यदि आपको विष्ठा में सौन्दर्य देखना है तो सूकर श्वान की दृष्टि से देखिये- कैसे चटखारे लेकर खाता है। प्रफुल्लित बदन कीचड़ में ही निवास स्थान बनाता है। प्राकृतिक आपदा के समय मानवीय गरिमा व प्रयास का खंडन करते हुए जब कोई चमत्कारिक घटना घटती है तब भौतिकवादी को सत्य का प्रत्यक्ष दर्शन होता है। आप मानें या न मानें समस्त जगत सत्य, शिव  व सुन्दर का ही मिश्रण है। जीव अपने असार उसका दर्शन करता है। अपने दृष्टिकोण के अनुसार ईश्वर के रूप की धारण बनाता है। सृष्टि के नियामक सृष्टा कहाँ अगोचर होता है जहाँ चेतना का प्रवाह प्रभावित हो रहा है। वहाँ एक महान शक्ति गोचर होती हैं। उस शक्ति को हम नेति-नेति कहते हैं।

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