होली पर निबंध हिंदी में (Essay on Holi in Hindi)

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होली पर निबंध हिंदी में
Essay on Holi in Hindi


🌈 होली पर निबंध हिंदी में (Essay on Holi in Hindi)  पर यह निबंध class 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए और अन्य विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए लिखा गया है।


होली पर निबंध हिंदी में (Essay on Holi in Hindi) प्रारूप १

जनवरी 8, 2022 “Essay on Holi in Hindi” by Amit Kumar


प्रस्तावना


भारत में कई प्रकार के त्यौहार मनाये जाते हैं। इनमें कुछ त्यौहार बहुत महत्व रखते हैं। जिनमें दीवाली, रक्षाबंधन और होली भी शामिल हैं। होली का उत्सव हमारे यहाँ बहुत पहले से मनाया जाता रहा है। इसके कई वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण भी बताये जाते हैं। यूँ तो लोग होली मनाने का अर्थ केवल रंगों से खेलने, एक-दूसरे को रंग लगाने और मिठाइयाँ आदि बाँटने को मानते हैं पर इसके अलावा भी इसका बड़ा महत्व है और वह महत्व आप इसे निबंध में अच्छे से जानेंगे। आइये होली के उत्सव की महत्वपूर्ण बातों की ओर रुख करते हैं।


होली के त्यौहार का आरंभ


होली के त्यौहार का सटीक आरंभ कब हुआ यह बताना कठिन है। किन्तु कहते हैं किसी समय पृथ्वी पर हिरण्यकश्यप नाम का एक राजा था। वह दैत्य प्रकृति का व्यक्ति था और स्वयं को ही भगवान समझता था। उसका एक प्रह्लाद नाम का पुत्र भी था। प्रह्लाद अपने पिता के विपरीत स्वभाव का सच्चा बालक था। वह भगवान विष्णु का भक्त था। हिरण्यकश्यप को यह बात पसंद नहीं थी। इसीलिये उसने प्रह्लाद को कई बार मारने का प्रयत्न किया किन्तु भगवान विष्णु की कृपा से असफल रहा।

अंतत: एक दिन अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर उसने प्रह्लाद को जलाने का निर्णय लिया। होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जल सकती। किंतु जब होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठी तो प्रह्लाद तो बच गया और होलिका स्वयं जल गई। हिरण्यकश्यप का संहार भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर किया। उसी दिन से प्रह्लाद की सत्यनिष्ठा और भक्ति की स्मृति में होली जलाने का उत्सव मनाते हैं।


होली के उत्सव में रंगों का महत्व


होली के उत्सव में रंगों का उपयोग किया जाता है। अपने प्रियजनों को अलग-अलग रंग लगाकर हम अपना प्रेम और मित्रता व्यक्त करते हैं। होली में रंगों का प्रयोग उस समय से है जब श्रीकृष्ण गोकुल और वृन्दावन में राधा के साथ रास किया करते थे। रास के समय राधा और अन्य गोपियाँ श्रीकृष्ण के साथ नि:स्वार्थ प्रेम अनुभव करती थीं। और पुष्पों के रंग कृष्ण के चेहरे पर लगाती थीं।


वर्तमान में प्राकृतिक रंगों के स्थान केमिकल के रंगों ने ले ली। फिर भी आज भी कई स्थानों पर प्राकृतिक रंगों का ही उपयोग किया जाता है। प्राकृतिक या फूलों के रंगों से हमारी त्वचा को कोई हानि नहीं पहुँचती है। जबकि केमिकल के रंग कई साइड इफ़ेक्ट करते हैं।


भारत के विभिन्न राज्यों की होली


आप जानते ही होंगे कि होली का त्यौहार पूरे भारत में ही मनाया जाता है। किंतु अलग-अलग राज्यों में होली विभिन्न प्रकार से मनाई जाती है। उदाहरण के लिये-

ब्रजभूमि की लठमार होली

उत्तर प्रदेश के बरसाना शहर की लठमार होली बहुत प्रसिद्ध है। यह होली मनाने का अनोखा तरीका है। इसमें पुरुष जब महिलाओं को रंग लगाते हैं तो महिलाएँ उन्हें लाठियाँ मारती हैं। ऐसा नहीं कि वे उन पर आक्रमण कर देती हैं बल्कि यह तो केवल मनोरंजन और आपसी आनंद के लिये होता है। राधा कृष्ण की रास स्थली बरसाना में लठमार होली का काफी लंबे समय से प्रचलन में है।

उत्तराखंड की खादी होली

उत्तराखंड की होली को खादी होली कहा जाता है। लोग पारम्परिक वस्त्रों को पहनकर अपनी क्षेत्रीय भाषा में गीत गाते हैं और नृत्य करते हैं और छोटे-छोटे समूह बनाकर बधाइयाँ देते हैं।

पंजाब का “होला मोहल्ला”

लड़ाकों की होली पंजाब प्रदेश में निहंग सिखों मनाते हैं। यह बड़ी होली के अगले दिन मनाई जाती है। वे इसमें अपनी विभिन्न कलाओं, नृत्य तथा गीतों का प्रदर्शित करते हैं।

बिहार की अगजा होली

बिहार में होली के त्यौहार को अगजा कहते हैं। लोग शाम को होलिका दहन करने के के अगले दिन लोक गीत गाते हैं और रंगों की होली खेलते हैं।

गोवा का शिमगो

गोवा में यह त्यौहार वसंतोत्सव के रूप मे मनाया जाता है। गोवा के नागरिक इसे शिमगो के नाम से जानते हैं जिसमें वहाँ के कृषक अपने पारंपरिक नृत्य और नुक्कड नाटक में अभिनय करते हैं।

बंगाल की “डोल पूर्णिमा” होली

असम और पश्चिम बंगाल की होली में कई समानता होती हैं। बंगाल के लोग इसे दोत्र कहते हैं। यहाँ होली दो दिन मनाते हैं। पहले दिन होलिका दहन के तौर पर झोपड़े को जलाया जाता है और अगले दिन रंगों की होली खेलते हैं।

राजस्थान की राजसिक होली

राजस्थान में लोग राजसिक होली मनाते हैं। होली से पहले संध्या के समय होलिका दहन करने के अगले दिन यहां राजसी तौर पर घोड़ों का सजाकर जुलूस निकालते हैं।

उपसंहार

होली एक बहुत बड़ा त्यौहार है। विभिन्न राज्यों भले ही इसे मनाने के अलग-अलग प्रकार हैं लेकिन हर स्थान पर इसका मूल बुराई पर सत्य और प्रेम की जीत है। हम कह सकते हैं कि प्रेम और सत्य में निष्ठा के बिना होली एक रंगहीन उत्सव है। असल रंग तो सत्य और प्रेम का होता है। आप भी होली का पर्व इसी प्रकार मनाएँ।

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५००+ शब्द होली पर निबंध हिंदी में (500+ Words Essay on Holi in Hindi) प्रारूप २

जनवरी 9, 2022 “Essay on Holi in Hindi” by Kshamashree Dubey


होली सनातन धर्म के मुख्य त्यौहारों में से एक है।  ये  फाल्गुन महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह बुराई पर अच्छाई और ईश्वर के प्रति अपरिमित और सच्ची भक्ति का त्यौहार है। 

एक समय की बात है, राजा  हिरण्यकश्यप जो खुद को जगत का देवता समझते थे और अपनी प्रजा को भी ईश्वर की जगह स्वयं की पूजन के लिए आदेश देते थे उन्हीं के पुत्र प्रह्लाद ने उनकी बात नहीं मानी। प्रह्लाद विष्णु भक्त थे और हिरण्यकश्यप उनकी पूजा-अर्चना के विरोधी थे । जब राजा हिरण्यकश्यप को यह बात पता चली तो उन्होंने प्रह्लाद के भगवान विष्णु की पूजा- अर्चना को त्यागने हेतु कई प्रयत्न किए पर प्रहलाद ने उनकी एक नहीं सुनी। वे निरंतर विष्णु भक्ति में लीन रहते थे। यह  देख राजा को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने अपने पुत्र को उनके आदेश की अवहेलना करने के लिए दंड देने की ठान ली।  उन्होंने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए क्योंकि उसे  ईश्वर से कभी आग में ना जलने का वरदान प्राप्त था। उसने भी अपने भाई की आज्ञा का पालन किया और प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई।  उसके उपरांत जो हुआ वो किसी चमत्कार से कम नहीं था। प्रजा ने जो कुछ देखा उसके बाद उनका विश्वास ईश्वर पर और बढ़ गया क्योंकि होलिका अग्नि में विलीन हो गई थी और प्रहलाद सर्व सुरक्षित जीवित बच गए। ये ईश्वर के प्रति उनकी सच्ची निष्ठा, भक्ति और समर्पण का परिणाम था। बस इसी घटना के बाद लोग होली का पर्व मनाने लगे और ईश्वर के अस्तित्व और न्याय को मानने लगे। 

होली का त्योहार मार्च महीने के आगमन से ही शुरू हो जाता है।  लोग गोबर के उपले या भरभोलिए बनाते हैं और उसे होलिका दहन के दिन होलिका में जलाते हैं। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत है इसलिए इस दिन किसी भी प्रकार का लेन-देन नहीं करना चाहिए । होलिका दहन के अवसर पर लोग होलिका की पूजा अर्चना करते हैं और अपने अंदर की सारी बुराइयों को उसी अग्नि में भस्म करने का प्रण लेते हैं। इस दिन धन का लेनदेन अशुभ माना जाता है।  लोग कहते हैं कि इस दिन लेन-देन करने से घर में लक्ष्मी का निवास और बरकत नहीं रहती है , इसलिए  इस दिन हमें किसी भी प्रकार का लेन-देन नहीं करना चाहिए। 

होलिका दहन के अगले दिन होली का पर्व आता है। यह त्योहार धर्म,  जाति,संप्रदाय ,आयु ,वर्ग इन सभी कुटिल सामाजिक अवधारणाओं से वंचित है। हर धर्म के लोग इसे मनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि हमें होली के दिन अपने सारे पुराने द्वेष- द्वंद्वों को भुलाकर एक नयी शुरुआत करनी चाहिए। एक दूसरे को रंग लगाना प्रेम और सौहार्द का प्रतीक माना जाता है। इस दिन बच्चे सबसे ज्यादा उत्साहित रहते हैं। वे अपने पानी से भरे गुब्बारे, पिचकारियाँ और रंगों का पैकेट लेकर गली-मोहल्लों में एक दूसरे को रंग लगाने के लिए दौड़ लगाते हैं। सुबह को पानी के रंगों से खेलते हैं और शाम में अबीर गुलाल से।

वैसे तो होली विश्व के कई देशों ,प्रदेशों और प्रांतों में खेली जाती है पर उत्तर प्रदेश में यह कई अलग ढंग से खेली जाती है। वृंदावन, मथुरा और बरसाने की होली देखने तो लोग विदेशों से आते हैं। यहाँ की लठमार होली और फूलों की होली तो आँखों के लिए ईश्वर के अस्तित्व के दर्शन समान है। वृंदावन की रंगों की होली खेलने के लिए तो बांके बिहारी मंदिर में पांव रखने तक की जगह नहीं होती ।

होली सिर्फ रंगों का ही नहीं बल्कि खाने-पीने का भी एक मुख्य त्योहार है। इस अवसर पर अनन्य प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं जैसे कि-गुजिया और नमकीन। इन रंगों के त्यौहार में और रंग मिलाने आती है ठंडाई । कई लोग ठंडाई में भांग डालकर भी पीते हैं जिसके उपरांत वो होश खो बैठते हैं और रंग में भंग डालने का काम करते हैं। सुबह होली खेलकर लोग शाम में अपने रिश्तेदारों के घर जाते हैं, बड़ों के पैर छूते हैं और अपने प्रियजनों को रंग लगाते हैं। बस इसी प्रकार लोग रंग- गुलाल खेलकर होली का त्यौहार मनाते हैं और अगले वर्ष  फिर इसके आगमन की प्रतीक्षा करते हैं।

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होली पर निबंध हिंदी में (Essay on Holi in Hindi) प्रारूप ३

जनवरी 12, 2022 “Essay on Holi in Hindi” by डॉ. उमा शर्मा

भारतीय संस्कृति में पर्व-त्योहारों के रूप में उत्सव का रस हमारे जीवन में घुला-मिला हुआ है। उत्सव के समय मन प्रफुल्लित हो उठता है, अनायास ही खुशियां मनाने लगता है। जीवन में जब भी कोई क्षण आनंद व उल्लास का आता है तो हमारा चित प्रफुल्लित होकर मधुरता को महसूस करता है। इस एहसास का नाम ही उत्सव है। हमारे पर्व त्योहारों की एक खास बात है कि ये किसी विशेष तिथि व समय पर ही मनाए जाते हैं। इनको इस तरह मनाने से लाभ यह होता है कि उस विशेष तिथि नक्षत्र या समय में विशेष अंतरिक्ष उर्जा, आध्यात्मिक ऊर्जा धरती के वातावरण में अवतरित होती हैं और लोगों को अदृश्य रूप से लाभान्वित करती हैं।

इस ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए ही लोग तैयारियां करते हैं। पर्व त्योहारों में पूजन करते हैं और इस दिव्य उर्जा के प्रभाव से ही लोग अपने मन में अपार खुशियों को महसूस करते हैं। भारतीय संस्कृति का हर पर्व-त्योहार अनेकता में एकता का संदेश देता है, फिर चाहे वह रिश्तो की डोर प्रगाढ़ करने के लिए रक्षाबंधन या अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला पर्व दीपावली हो या फिर सदभाव बढ़ाने वाला पर्व होली हो।

इन सभी पर्व-त्योहारों में होली ही एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें सभी देशवासी ऐसे रंग में रंग जाते हैं जिसमें सभी एक जैसे दिखते है, एक स्तर पर खड़े होते हैं। भेदभाव किसी में नहीं रहता, न जात-पात का, न सुंदर-कुरूप का, न ऊच-नीच का, न अमीर-गरीब का। सभी दूर से एक जैसे दिखते हैं। इसमें निजी पहचान खत्म हो जाती है और केवल एक पहचान बचती है की वह मनुष्य है, वह देशवासी है।

सबको एकता के रंग में रंगने वाला अपने सुंदर रंगों से सजाने वाला होली का पर्व वास्तव में अनेकार्थ को अपने में समेटे हुए हैं। मनोवैज्ञानिक की दृष्टि से देखा जाए तो मन की गहरी परतो में छिपे हुए कई ऐसे अच्छे-बुरेभाव होते हैं, जिन्हें व्यक्ति छुपा कर रखता है। सहजता से उजागर नहीं करता, लेकिन होली के पर्व में इसकी धुन में खेल-खेल में व्यक्ति अपनी अदा का सब कुछ बाहर निकाल देता है। होली खेलने में जो मन मयूर नाचता है, गीतों की फुहार उठती है, नगाड़े संग सब मिलकर झूमते हैं, खुशियां मनाते हैं, एक-दूसरे पर रंग खेलते हैं। यह सब प्रक्रिया मन की कलमा को दूर करती है, उसे धोती है, उसे नए रंगों से सजाती है, मन को निर्मल स्वच्छ और सुंदर बनाती है। दूसरे शब्दों में होली को मन के मैल धोने का पर्व कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि यहां पर्व एक तरह से हमारे मन-मालिन्य को धोने ही आता है।


होली के पर्व में जिन विविध रंगों का उपयोग किया जाता है वह इसलिए ताकि इन्हें रंग कर हम अपने अंदर चढ़ी हुई दुर्भावो की मलिनता को दूर कर सके। खूबसूरत रंगों की खुशबू से अपने अंदर के अवगुणों की दुर्गंध को हटा सके। खूबसूरत रंगों और उसकी सुगंध से अपने मन को ताजा कर सके, ताकि हमारा मन फिर से नया हो जाए, तरोताजा हो जाए।


होली ही एकमात्र ऐसा पर्व है जिसे खेला जाता है। वैसे खेल तो बच्चे खेलते हैं, होली के पर्व में बच्चे, बूढ़े, जवान सभी खेलते हैं, अपने-अपने ढंग से खेलते हैं, सभी के खेलने का तरीका अलग होता है। जिस तरह खेलने से ताजगी मिलती है, उत्साह मन में जगता है, उसी तरह होली का पर्व सभी के मन को उत्साह के रंग से सराबोर कर देता है। होली के रंग खेलने में खासियत एक ही होती है कि इसे खेलने के लिए कोई नियम नहीं होता, कोई कायदा या कानून नहीं होता, बस यही ध्यान रखा जाता है कि जो भी खेला जाए वह नैतिकता के दायरे में हो, अनैकिता न हो।

 होली वसंत ऋतु का पर्व है इस ऋतु में मौसम बड़ा सुहावना होता है। विभिन्न सुंदर फलों से प्रकृति शोभायमान हो जाती है। मनमोहक फूलों की सुगंध चारों ओर फैली रहती है।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला फागुन के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं –

फूटे हैं आमों में बौर,
भौंर वन-वन टूटे हैं।
होली मची ठौर-ठौर,
सभी बन्धन छूटे हैं।

फागुन के रंग राग,
बाग-वन फाग मचा है,
भर गये मोती के झाग,
जनों के मन लूटे हैं।

माथे अबीर से लाल,
गाल सेंदुर के देखे,
आँखें हुई हैं गुलाल,
गेरू के ढेले कूटे हैं।

@ Essay on Holi in Hindi poem

इस तरह वसंत ऋतु में प्रकृति का संपूर्ण श्रृंगार होता है, और होली का पर्व इस ऋतु में चार चांद लगा देता है। प्रकृति तो श्रृंगार करती ही है, मनुष्य इस पर्व में होली खेलकर विविध रंगों से स्वयं को सजा लेता है।

होली का पर्व केवल रंग गुलाल खेलने तक ही सीमित नहीं रहता, इसमें रसास्वादन करने के लिए पकवानों मिठाइयों की भी भरमार होती है। विशेष रूप से मिष्ठानो में गुजिया और पेय में ठंडई का इस पर्व में विशेष स्थान है। अन्य तरह के पकवान व व्यंजन बनाए जाते हैं और होली-मिलन के अवसर पर उन्हें परोसा जाता है, इन्हें खिलाकर लोगों को होली की बधाई दी जाती है।

महाकवि तुलसीदास ने भी रघुनाथ जी के होली खेलन का वर्णन बड़े सुंदर ढंग से किया है –


होली खेले रघुवीरा अवध में होली खेले रघुवीरा।

भक्त शिरोमणि सूरदास ने भी अनुन वर्णन किया है –


गलिन-गलिन ग्वाल ग्वालिन।
गाल-गाल गुलाल गुलावत है।।

होली पर्व की इतनी सारी विशेषताएं हैं, लेकिन समय के साथ इसमें कई बुराईया भी प्रवेश कर गई है। जैसे – कई जगह जगह होली के पकवानो , मिष्ठानो व पेय में भांग मिला दी जाती है, जिससे व्यक्ति को नशा चढ़ जाता है और फिर उसे होश नहीं रहता। भांग व अन्य नशीले पदार्थ की मिलावट के डर से लोग होली पर्व पर कहीं भी कुछ खाने से परहेज करते हैं और यह स्वास्थ्य व समाज किसी के लिए भी हितकर नहीं है। अतः होली के पर्व पर भांग व अन्य किसी भी प्रकार के नशे का त्याग करना चाहिए।

 इसके साथ ही आजकल होली खेलने वाले गुलाल व रंग में ऐसे रसायनों का प्रयोग होने लगा है जो हमारी त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं, माथे पर लगाने से सिर दर्द का कारण बनते हैं, इनके रंग आंख, कान को भी नुकसान पहुंचाते है। अतः इनसे बचने के लिए प्राकृतिक रंगों से होली खेलना उचित है।


होली सदभावना का प्रतीक है। ऐसा पर्व है कि हम सभी को धूमधाम से मनाना चाहिए, कीचड़ से कदापि नहीं, अपनी शिष्टता, शालीनता सभ्यता व संस्कृति को गवाकर नहीं। यह कर्तव्य हम सबका है, सामूहिक है। देश की धरती रक्त से लाल नहीं टेसू के रंग से लाल होनी चाहिए। कीचड़ की दुर्गंध क्यों? हर तरफ केसर की सुगंध होनी चाहिए। होली का त्योहार आया है तो हंसी ठिठोली भरपूर हो, पर गाली और गोली की आवाज कहीं से भी सुनाई नहीं देनी चाहिए। पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त करना हम सब का कर्तव्य है। इसे तो करना ही है ताकि जलवायु सुगंधित हो, धरती की उर्वरा शक्ति और अधिक विकसित हो, अग्नि धूम्ररहित हो, और आकाश निरम हो।


पर्यावरण की शुद्धि के साथ अपने अंतःकरन की भी शुद्धि जरूरी है। तन को मैंळ धोने के साथ मन का मैल भी धोना जरूरी है। वाणी में मिठास हो और विचारों व व्यवहार में संवेदना। होलिका दहन में हम सभी के तन-मन-जीवन की अशुद्धियां भी दहन होनी चाहिए। कुछ इस तरह हर एक का जीवन प्रह्लाद की तरह निष्कलप व सभी अशुद्धियो से मुक्त हो। ताकि सब सुनाई दे तो सिर्फ होली की शुभकामनाएं, होली की मुबारकबाद


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होली का त्योहार क्यों मनाया जाता है?

एक समय की बात है, राजा  हिरण्यकश्यप जो खुद को जगत का देवता समझते थे और अपनी प्रजा को भी ईश्वर की जगह स्वयं की पूजन के लिए आदेश देते थे उन्हीं के पुत्र प्रह्लाद ने उनकी बात नहीं मानी। प्रह्लाद विष्णु भक्त थे । जब राजा हिरण्यकश्यप को यह बात पता चली तो उन्होंने प्रह्लाद के भगवान विष्णु की पूजा- अर्चना को त्यागने हेतु कई प्रयत्न किए पर प्रहलाद ने उनकी एक नहीं सुनी। वे निरंतर विष्णु भक्ति में लीन रहते थे। यह  देख राजा को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने अपने पुत्र को उनके आदेश की अवहेलना करने के लिए दंड देने की ठान ली।  उन्होंने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए क्योंकि उसे  ईश्वर से कभी आग में ना जलने का वरदान प्राप्त था। उसने भी अपने भाई की आज्ञा का पालन किया और प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई।  उसके उपरांत जो हुआ वो किसी चमत्कार से कम नहीं था। प्रजा ने जो कुछ देखा उसके बाद उनका विश्वास ईश्वर पर और बढ़ गया क्योंकि होलिका अग्नि में विलीन हो गई थी और प्रहलाद सर्व सुरक्षित जीवित बच गए। ये ईश्वर के प्रति उनकी सच्ची निष्ठा, भक्ति और समर्पण का परिणाम था। बस इसी घटना के बाद लोग होली का पर्व मनाने लगे और ईश्वर के अस्तित्व और न्याय को मानने लगे। 

वर्ष 2022 में होली कब मनाई जाएगी?

Friday, 18 March 2022

होली के दिन लोग कौन-कौन से पकवान बनाते हैं ?

गुझिया, पकवान, कुरकुरे पापड़, मसाला कचौरी, मालपुआ, भांग की पकोड़ी, ठंडई, पापड़ी चाट और दही भल्ला, नमक पारा इत्यादी


विनम्र अनुरोध: 

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