महात्मा गांधी पर निबंध (Essay on Mahatma Gandhi in Hindi)

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महात्मा गांधी पर निबंध
Essay on Mahatma Gandhi in Hindi


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प्रस्तावना

हमारे भारत देश में असंख्य महान लोगों ने जन्म लिया है। इन लोगों में कई क्रांतिकारी, समाज-सेवक, वैज्ञानिक, लेखक, कवि, संत और अन्य कई क्षेत्रों के लोग शामिल हैं। इनमें से बहुत से लोगों ने भारत को गुलामी से आजाद कराने के लिये भी अपना जीवन न्यौछावर किया है। ऐसे ही एक व्यक्ति का नाम है- महात्मा गाँधी। अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलते हुए उन्होंने भारत को आजादी दिलाने के कई प्रयास किये। वे विदेश भी गए और अपनी संस्कृति और देश को नहीं भूले। आइये उन्हीं के जीवन बारे में अन्य कई बातों को जानते हैं।

महात्मा गांधी का बचपन और शैक्षिक जीवन

महात्मा गाँधी का जन्म गुजरात राज्य के पोरबन्दर में हुआ था। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था। उनके पिता का नाम करमचंद गाँधी और माता का नाम पुतलीबाई था। उनके पिता राजकोट की रियासत में दीवान के तौर पर कार्य करते थे तथा माँ एक अंत्यंत धार्मिक महिला और गृहिणी थीं। माता के संस्कारों का प्रभाव मोहनदास पर विस्तृत रूप से पड़ा।

इनका विवाह तेरह वर्ष की उम्र में ही हो गया था। मैट्रिक पूर्ण करने के बाद इन्होंने कानून की पढ़ाई के लिये विलायत जाने का बात परिवार के समक्ष रखी। इन्होंने अपने परिवार से वादा किया कि वे विदेश में होने वाले व्यसनों से दूर रहेंगे और अपने धर्म का पालन करेंगे। इंग्लैंड से सन् 1890 ई0 में एक वकील के रूप में वापस भारत आ गए।

महात्मा गांधी का दक्षिण अफ़्रीका में संघर्ष

कुछ समय बाद गाँधी जी को एक मुकदमे की पैरवी के लिये दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। उनका रंग काला होने की वजह से उन्होंने वहाँ बहुत अपमान सहा। काले रंग के कारण ही एक अंग्रेज अधिकारी ने ट्रेन में से धक्का देकर गिरा दिया। अपने साथ और अन्य वहाँ रहने वाले भारतीयों के साथ होने वाले इन दुर्व्यवहारों के खिलाफ उन्होंने आवाज उठाई। सैकड़ों भारतीयों ने उनके साथ इस विरोध में हिस्सा लिया। 

सन् 1893 से 1914 तक चले इन आंदोलनों में कई उतार-चढ़ाव आये, पर जीत सच्चाई के रास्ते पर चलने वाले महात्मा गाँधी की ही हुई। दक्षिण अफ्रीका में हुए संघर्षों को देखकर उन्हें अहसास हुआ कि उनके देश में भी भारतीय अंग्रेजों के अत्याचारों से इसी तरह पीड़ित रहते हैं। इसीलिये 1915 में भारत वापस आए और अंग्रेजों का विरोध सत्य और अहिंसा के साथ करने लगे।

अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसा की लड़ाई

गाँधी जो को महात्मा की उपाधि महान उपन्यासकार रवीन्द्रनाथ टैगोर ने दी थी। भारत में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ 1920 में असहयोग आंदोलन, 1930 में नमक सत्याग्रह व डांडी मार्च तथा 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन किये। इन आंदोलनों में लाखों की भीड़ मौजूद रहती थी और अंग्रेजों की नीतियों और अत्याचारों का विरोध करती थी। महात्मा गाँधी ने कई अनशन पर बैठकर गलत कानूनों को बदलने के सफल प्रयास किये।

गाँधी जी ने सिर्फ देश की स्वतंत्रता के लिये नहीं बल्कि समाज में पनप रहे जातिगत असमानताओं का भी कड़ा विरोध किया। छुआछूत विरोधी लीग की स्थापना करके उन्होंने छूआछूत जैसी सामाजिक बीमारी का खत्म करने में बीड़ा उठाया। अपने संदेशों और अंग्रेजों का अहिंसात्मक विरोध के उद्देश्यों को सामान्य जनता तक पहुँचाने के लिये उन्होंने हरिजन और नवजीवन जैसे स्वदेशी पत्रिकाओं का सहारा लिया। अपने प्रिय भजनों को भी उन्होंने जनता तक अपने विचार पहुँचाने के लिये उपयोग किया। उनका एक प्रिय भजन था-

वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीर परायी जाने रे,
पर दुख पर उपकार करे तोये मन अभिमान ना आने रे।

धीरे-धीरे निरंतर विशाल रूप धारण करने वाले आंदोलनों और भारतीय क्रांतिकारियों की गतिविधियों के कारण अंग्रेजी शासन के स्तंभ गिरने लगे। अपने आंदोलनों और विरोध के कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। इसके बाद भी उन्होंने अपने उद्देश्य को पाने के लिये सत्य और अहिंसा का मार्ग नहीं छोड़ा। आखिरकार सैकडों क्रांतिकारियों और गाँधी जी के निरंतर विरोध के फलस्वरूप भारत को 14 अगस्त 1947 की रात अंग्रेजों की दासता से आजादी मिल गई और 15 अगस्त को भारत ने स्वतंत्रता का सूरज देखा।

उपसंहार

महात्मा गाँधी ने सत्य और अहिंसा के बलबूते पर और देश की जनता के समर्थन से अपने आंदोलनों को सफल किया। महान क्रांतिकारी सुभाषचंद्र बोस ने उन्हें देश के राष्ट्रपिता की उपाधि से अलंकृत किया। देश की आजादी के कुछ माह बाद ही 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी। कहते हैं, मृत्यु के समय उनके मुख से जो अंतिम शब्द निकले थे, वे थे- हे राम! ऐसे व्यक्तित्व और कर्तत्व के धनी महात्मा गाँधी का देश अपनी स्वतंत्रता के लिये ऋृणी रहेगा।


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