रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध (Rani Laxmi Bai Essay in Hindi)

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रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध
Rani Laxmi Bai Essay in Hindi


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प्रस्तावना

हमारे देश में आरंभ से अनेक स्त्रियों ने अपने चरित्र, पवित्रता, पराक्रम, और साहस के बल पर अपना लोहा मनवाया है। उन्होंने अन्य नारियों के लिये भी जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किये। उन्हीं नामों में से एक नाम जो निरंतर उज्जवल रहता है वह है- रानी लक्ष्मीबाई। झाँसी की रानी के नाम से संबोधित की जाने वाली लक्ष्मी बाई का जीवन बहुत संघर्ष भरा रहा। उन्होंने अपनी अंतिम साँस तक अंग्रजों के खिलाफ झाँसी को स्वतंत्र करने के लिये युद्ध किया। उन्हीं रानी लक्ष्मीबाई पर आधारित यह निबंध आपको भी ज्ञान और प्रेरणा देगा।

लक्ष्मीबाई का बाल्यकाल और शिक्षा-दीक्षा

इनका जन्म सन् 1828 ई0 में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था। इनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे था तथा माता का नाम भागीरथी बाई था। माता-पिता ने इन्हें मणिकर्णिका नाम दिया और वे प्यार से मनु कहकर पुकारते थे। जब मनु कुछ वर्ष की ही थीं तब इनकी माता का निधन हो गया था। इसके उपरांत पिता मनु को लेकर बिठूर जाकर पेशवा बाजीराव के साथ रहने लगे। 

मनु बचपन से कुशाग्र बुद्धि और निष्ठावान थीं। बिठूर में रहकर मनु ने कई तरह की युद्ध और शस्त्र कलाओं का प्रशिक्षण लिया। पेशवा बाजीराव के नेतृत्व में उनमें तीरंदाजी, घुड़सवारी, घेराबंदी का खासा अभ्यास हो गया था। पेशवा बाजीराव ने उन्हें प्यार से छबीली नाम दिया।

रानी लक्ष्मीबाई का वैवाहिक जीवन

उनका विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ। विवाह के पश्चात उन्हें एक पुत्र भी हुआ किंतु कुछ ही महीने जीवित रहकर ही उसकी मृत्यु हो गई। अपने पुत्र के स्मृति में उन्होंने एक दत्तक पुत्र गोद लिया और उसका नाम दामोदर राव रखा। कुछ समय बाद राजा गंगाधर का भी किसी गंभीर बीमारी के चलते स्वर्गवास हो गया। इस घटना से रानी पूरी तरह टूट चुकी थीं। फिर भी उन्होंने किसी तरह खुद को संभाला और राजकाज स्वयं ही देखने लगीं।

अंग्रेजों के खिलाफ रानी का संघर्ष

गंगाधर राव की मृत्यु की खबर सुन अंग्रजों ने झाँसी पर कब्जा करने का विचार किया। अंग्रजों ने दामोदर राव को झाँसी का उत्तराधिकारी मानने से इन्कार दिया था। और वे अन्य राज्यों की भाँति झाँसी को ब्रिटिश राज्य में मिलाना चाहते थे इसलिये उन्होंने रानी को झाँसी छोड़कर जाने का हुक्म दिया। लेकिन रानी ने ऐसा नहीं किया और कहा, मैं अपनी झाँसी किसी को नहीं दूँगी। 

इसके पश्चात अंग्रेजों ने छल और कूटनीति से झाँसी पर आक्रमण कर उसे कब्जे में ले लिया। रानी ने तात्या टोपे, बेगम हजरत महल, नाना साहब और अन्य कई महान योद्धाओं क साथ मिलकर सन् 1857 के अंग्रेजों के खिलाफ सबसे बड़ी क्रांति में भाग लेने का फैसला किया। व्यवस्थित तरीके से निर्धारित की गई तारीख 31 मई 1857 से पहले ही लोगों में क्रांति का ज्वर फूट पड़ा और सभी चीजें अस्त-व्यस्त हो गईं। 

नयी सेना का संगठन करके रानी ने ग्वारियर के किले पर अपना कब्जा स्थापित किया। इसके बाद उन्होंने क्रांति में शामिल लोगों के साथ नये सेनाएं बनायी जिनमें पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी शामिल थीं। इन्हीं में एक महिला का नाम था- झलकारी बाई, जो लगभग रानी के समान ही लगती थीं। इसी बीच रानी के संगठन के ही एक सदस्य जिजिवा राव सिंधिया ने उनसे धोखा करके अंग्रेजों की सहायता की। इसके बाद जब ग्वालियर का युद्ध हुआ तो झलकारी बाई ने रानी के वेष बनाकर अंग्रेजों से रानी को बचाने का यत्न किया जिसमें वे कुछ हद तक सफल भी हुईं। लेकिन अंग्रेजी सेनापति इस षड़यंत्र को भाँप गया। और बाद में रानी लक्ष्मीबाई का पीछा किया।

रानी ने अपने पुत्र दामोदर राव के पीठ से कसकर बाँधा और अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ते-लड़ते 18 जून 1858 वीरगति को प्राप्त हुईं। उनका प्रण था कि अंग्रेज उनके शरीर का भी स्पर्श न कर पाएं और ऐसा ही हुआ। एक स्थानीय बाबा ने झोपड़ी से चिता बनाकर रानी का अंतिम संस्कार किया। रानी लक्ष्मीबाई ने अपने शौर्य और पराक्रम से अंग्रेजी सेना के दाँत खट्टे कर दिये थे। रानी लक्ष्मी बाई के जीवन पर कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रस्तुत पंक्तियाँ हमें रानी के असीमित बहादुरी और चरित्र से परिचित कराती है।

सहे वार पर वार अंत तक, लड़ी वीर बाला सी,
आहुति सी गिर पड़ी चिता पर, चमक उठी ज्वाला सी।

उपसंहार

अंग्रेजो के खिलाफ निरंतर संघर्ष करते हुई रानी ने अपनी जीवन देश को अर्पित कर दिया था। रानी की ये कहानी हमें जिन लोगों ने बताई, वे भी वंदनीय हैं।

बुन्देले हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।

इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों पर रानी लक्ष्मीबाई का नाम उनकी देशभक्ति के लिये सदैव अंकित रहेगा। वे हमारे देश के सभी लोगों और खासकर नारियों के लिये मिसाल हैं। उनकी चरित्र और कला-कौशल अपने शिखर पर था। उनका नाम हमेशा हमारे लिये गौरव और वीरता का उदाहरण रहेगा। 

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