🕋 शब-ए-मेराज (SHAB E-MERAJ FESTIVAL) या शबे मेहराज मुसलमानों द्वारा मनाया जाने वाला एक इस्लामी त्यौहार है, जो मुसलमानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसे हर साल रजब की 26 और 27 तारीख को मनाया जाता है। रजब की 27वीं शब को मोहम्मद (Sallallahu alayhi wa salam), जिन्हें प्यारे नबी भी कहा जाता है, उन्होंने अल्लाह से मुलाक़ात की थी। इसी खुशी में हर साल मुसलमान 26 व 27 तारीख को खूब इबादत करते हैं, सदका देते हैं और रोज़ा रखते हैं। साथ ही नये कपड़े पहनते हैं, इत्र लगाते हैं, मस्जिदें सजाई जाती हैं, जहां लोग नमाज़ पढ़ते हैं। वैसे तो रोज़ा पूरे महीने ही रखा जाता है, लेकिन आज के दौर के लोग अपने दीन का पूरी तरह से पालन नहीं कर रहे हैं। लोगों को अपने दीन को समझना और उसपर सही तरीके से चलना चाहिए।
शब-ए-मेराज
SHAB E-MERAJ FESTIVAL
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प्रस्तावना (Introduction) –
इस बार शब-ए-मेराज (Shab-E-Meraj 2022 Date) 1 मार्च 2022 को है। शब-ए-मेराज वह रात है, जिसमें मोहम्मद (Sallallahu alayhi wa salam) ने अल्लाह ताला का दीदार किया था। और अल्लाह ने प्यारे नबी से लोगों की भलाई का पैगाम उनके हाथों भेजा, और लोगों को पांच वक्त की नमाज़ पढ़ने का पैगाम भी भिजवाया। इसलिए हर साल उस दिन की खुशी मनाई जाती है, और शब-ए-मेराज की रात को सभी लोग पूरी रात इबादत करते हैं। और कहा जाता है कि इस रात सच्चे दिल से अल्लाह से जो भी दुआ मांगो वह कुबूल होती है। वैसे तो अल्लाह ताला हमेशा हमारी दुआओं को सुनने वाला है, लेकिन इस रात वह खासतौर से हमारी दुआओं को कुबूल करता है।
शब-ए-मेराज का अर्थ क्या है (What is the Meaning of Shab-e-Meraj)?
शब का मतलब होता है रात और मेराज का मतलब होता है सीढ़ी (ऊपर चढ़ने वाला)। यानि इस शब्द शब-ए-मेराज का इस्लामी अर्थ सातवें आसमान पर जाकर अल्लाह से मुलाक़ात करना है, जो कि प्यारे नबी ने की थी। शब-ए-मेराज को भी दो भागों में बांटा गया है – (1) इसरा और (2) मेराज।
इसरा का शाब्दिक अर्थ होता है रात के एक भाग में चलना, जबकि मेराज का मतलब होता है सीढ़ी (चढ़ने का माध्यम)।
शब-ए-मेराज के पहले भाग यानि इसरा में प्यारे नबी ने मक्का में मौजूद मस्जिद-ए-हरम से लेकर फिलिस्तीन में स्थित मस्जिद-ए-अक़्सा की यात्रा तय कर ली थी। उसके बाद शब-ए-मेराज के दूसरे भाग यानि मेराज में उन्होंने सातों आसमानों की यात्रा शुरु कर दी थी। जहां उन्हें हर एक आसमान पर पैगंबर मिलते और उन्हें आगे का रास्ता दिखाते, और फिर आखिर में प्यारे नबी को सातवे आसमान पर अल्लाह का दीदार होता है।
शब-ए-मेराज का महत्व (Importance of Shab-e-Meraj) –
शब-ए-मेराज में प्यारे नबी की मुलाक़ात अल्लाह ताला से हुई थी, इसलिए शब-ए-मेराज की रात को अफ़ज़ल रातों में से एक माना जाता है। इस रात को हजरत जिब्रील प्यारे नबी के पास आए थे, और उन्होंने उनसे कहा था कि अल्लाह ताला आपसे मिलना चाहते हैं। प्यारे नबी उसी वक्त उठकर अल्लाह ताला के दीदार को गए और वहां अल्लाह ने प्यारे नबी से लोगों की भलाई की बात की, और सबको पांच वक्त की नमाज़ पढ़ने का हुक्म दिया। इसलिए इसे हर साल रात को सभी मुसलमान पूरी रात जागकर अल्लाह की इबादत करते हैं, और दुआएं मांगते हैं। साथ ही 26 व 27 रजब का रोज़ा रखते हैं।
शब-ए-मेराज का इतिहास (History of Shab e-Meraj Festival)
Shab e-Meraj Festival Ka Waqia in Written –
प्यारे नबी मोहम्मद (SAW) अल्लाह के रसूल तथा आखरी पैगंबर हैं, जो इस्लाम धर्म के प्रसारक भी हैं। वह सबको एक अल्लाह को मानने की हिदायत देते थे। अपने अच्छे स्वभाव और सच्चाई व ईमानदारी से वह हर तरफ दीन फैलाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन इस समय उनके ऊपर लोग भरोसा करने की बजाए उनके दुश्मन बन गए थे। उनसे खराब बर्ताव करते थे और उनको नीचा दिखाने की कोशिश करते थे। यहां तक कि उनको समुदाय से भी बाहर निकाल दिया गया था। समुदाय से बाहर निकालना उस समय मृत्यु से कम नहीं था। वो लोग चाहते थे कि अल्लाह के नबी का भरोसा अल्लाह से उठ जाए, लेकिन प्यारे नबी ने कभी भी अपना हौंसला टूटने नहीं दिया। और उसी समय जब लोगों का जुल्म हद से ज्यादा बढ़ गया तो अल्लाह ने हज़रत जिब्रील के हाथ प्यारे नबी से मुलाक़ात का पैगाम भेजा।
रात का वक्त था, अल्लाह के नबी अपने बिस्तर पर सो रहे थे कि तभी अल्लाह के फरिश्ते हज़रत जिब्रील उनके पास आते हैं और कहते हैं कि अल्लाह ताला उनसे मिलना चाहते हैं। प्यारे नबी फ़ौरन अल्लाह से मुलाक़ात करने के लिए तैयार हो जाते हैं। हज़रत जिब्रील प्यारे नबी को काबा के पास हतीम में ले जाते हैं और उनका सीना चीरते हैं और सीने से उनका दिल बाहर निकालकर उसे एक सोने के तश्त, जो कि नेकी और ईमान से भरा था उसमें धोते हैं। धोने के बाद प्यारे नबी के दिल को फिर से उनके शरीर में उसी जगह पर लगा देते हैं। और फिर वहां पर एक बुराख खड़ा रहता है, जिसका शरीर घोड़े की तरह और चेहरा इंसानों की तरह रहता है। उसपर बैठकर प्यारे नबी अल्लाह से मुलाक़ात के लिए निकलते हैं। बुराख़ पर बैठकर वह बैतुल मुकद्दस पहुंचकर मस्जिद में नमाज़ पढ़ते हैं।
नमाज़ पढ़ने के बाद प्यारे नबी आसमानों की यात्रा पर निकल जाते हैं। आसमानों पर उन्हें कई पैगंबर मिलते हैं, जो उन्हें आगे का रास्ता दिखाते हैं। इस तरह आसमानों की यात्रा करने के बाद प्यारे नबी की मुलाक़ात अल्लाह ताला से होती है। वहां अल्लाह ताला प्यारे नबी से अपना पैगाम लोगों तक पहुंचवाते हैं और पांच वक्त की नमाज़ का हुक्म देते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion) –
इतनी लंबी यात्रा करने के बाद प्यारे नबी अल्लाह का दीदार करते हैं। अल्लाह ताला प्यारे नबी से मिलकर बहुत खुश होते हैं। और उनपर अपना सलाम भेजते हैं। प्यारे नबी भी अल्लाह के दीदार से बहुत खुश रहते हैं, लेकिन ऐसे समय में भी वह अपनी उम्मत को नहीं भूलते। और जब अल्लाह ताला उनपर सलाम भेजते हैं तो वह उस सलाम में अपनी उम्मत को भी शामिल कर लेते हैं।
ऐसे थे हमारे प्यारे नबी जो हर तरह से अपनी उम्मत की बख्शिश के लिए अल्लाह से दुआ करते थे। इसके अलावा वह लोगों के बीच अच्छाई करके लोगों को अल्लाह के होने का अहसास दिलाते थे।
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