गुरु का महत्व पर निबंध | जीवन में गुरु का महत्व पर निबंध

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गुरु का महत्व पर निबंध
जीवन में गुरु का महत्व पर निबंध

परिचय

गुरु शब्द किसी परिचय का मोहताज नहीं होता। गुरु की महिमा और गरिमा अनंत होती है, फिर भी इस सीमित लेख में गुरु के अनंत व्यक्तित्व को बताने की प्रयास करूंगा। हमारे देश में गुरु को भगवान से भी बड़ा दर्जा दिया गया है, साथ ही हम गुरु को माता-पिता से भी ऊपर मानते हैं।

गुरु शब्द का अर्थ होता है अंधेरे को दूर करने वाला। जब तक शिष्य को प्रामाणिक गुरु नहीं मिलते तब तक उसका जीवन अंधकार में ही होता है। गुरु स्वयं दिये की तरह खुद जलते हैं और शिष्य के लिये प्रकाश फैलाते हैं। जिसके भी मन में अंधकार से छूटने की अभिलाषा होती है वह गुरु की शरण जाकर वह प्रकाश प्राप्त कर सकता है।

मार्गदर्शक के रूप में गुरु

बचपन से माता-पिता के पालन-पोषण के बाद बच्चे को विद्यालय भेजा जाता है। एक अनजानी जगह जहाँ से उसके जीवन का भविष्य तय होगा। वहाँ गुरु के ही सान्निध्य में वह शिक्षा ग्रहण करता है। गुरु अपने जीवन के अनुभवों और समझ के अनुसार छात्र का मार्ग प्रशस्त करते हैं और हमेशा उसके भले के लिये ही कड़े अनुशासन का प्रबंध करते हैं।

प्राचीन गुरुकुलों में 20 से 25 वर्षों तक शिष्य को गुरु की सेवा में ही रत रहकर विद्यार्जन करना होता था। विभिन्न युद्ध कलाओं और वेदादि शास्त्रों के पठन-पाठन में दिन गुजरता था। गुरु का हर आदेश उनके लिये मान्य था। एक मार्गदर्शक के तौर पर गुरु उन्हें अच्छाई के रास्ते पर चलने की प्रेरणा देते थे।

आज के समय की स्थिति पहले की तुलना में थोड़ी सी विकृत भले ही हो गई हो। फिर भी अच्छे गुरुओं का मार्गदर्शन आज भी योग्य छात्रों को अवश्य मिलता है। 

गुरु के गुण हजार

गुरु के गुण अनगिनत हैं। उन गुणों का वर्णन करने में समस्त सागरों के जल से बनी स्याही भी असफल रहती है। संत कबीर का यह दोहा हमें गुरु की महिमा बताता है।

सबधरतीकागदकरूँ, लेखनीसबवनराय।

सातसमुद्रकीमसिकरूँ, गुरुगुनलिखाजाए।।

कितने ही भिन्न-भिन्न विषयों पर हम गुरुओं से मार्गदर्शन पा सकते हैं। उनका कार्यक्षेत्र विशाल होता है। वे शिष्य के मन की स्थिति को तो समझते ही हैं, साथ ही ये भी स्पष्ट रूप से जानते हैं कि उसके लिये सही क्या है।

राजा-महाराजाओं के समय उनके गुरु ही शासनादि विषयों में उनके सलाहकार होते थे। राजधर्म और प्रजा का पालन करने की सभी जरूरी बातों का शिक्षण करते थे। महान सम्राट चंद्रगुप्त को उनके गुरु चाणक्य ने ही प्रशिक्षित और पथ-प्रदर्शन किया था। गुरु न केवल शिष्य के हित का ख्याल रखते हैं बल्कि समाज की भी दशा और परिस्थितियों को सुधारने के यत्न करते हैं।

ईश्वर से भी ऊँचा दर्जा

गुरु को ईश्वर से भी अधिक पूज्य कहा गया है। हमारे ग्रंथ कहते हैं-

गुरुर्ब्रह्मागुरुर्विष्णुगुरुर्देवोमहेश्वरा।

गुरुर्साक्षातपरब्रह्मतस्मैश्रीगुरवेनमः।।

अर्थात गुरु साक्षात परमात्मा है। क्योंकि परमात्मा की ही तरह गुरु के पास भी शिष्य का जीवन सँवारने या नष्ट करने का अवसर होता है। 

उनके वचनों और आदेशों को समझना और पालन करना शिष्य के हित में होता है। ईश्वर का ज्ञान हमें गुरु के सत्संग से ही मिलता है। वही हमारा ईश्वर तक पहुँचने में मार्ग प्रशस्त करते हैं। यदि गुरु के प्रति ही प्रेम भाव और भक्ति न हो तो व्यक्ति ईश्वर को पाने की अमूल्य निधि से वंचित रह जाएगा।

गुरु के अभाव में जीवन

जो भी महान लोग हुए हैं, चाहे वे कृष्ण हों या राम, गाँधी या बुद्ध हों या कोई और हों- इन सभी के गुरु थे। सभी से इन्होंने कुछ-न-कुछ सीखा था। किंतु जिन लोगों के जीवन में कोई गुरु नहीं होता, उनका सिर्फ पतन होता है, उत्कर्ष नहीं। 

ऐसे लोग केवल धन, पद आदि के लिये मारे-मारे फिरते हैं लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं आता। गुरु के अभाव में जीवन की कल्पना करना ही असंभव है।

गुरु एक कुम्हार की भाँति होता है, जो शिष्य को एक मिट्टी के घड़े की तरह सही आकार देता है। यदि मिट्टी को उचित कुशल कुम्हार न मिलें तो वह आजीवन मिट्टी ही रह जाएगी और उत्कर्ष न पा सकेगी।

निष्कर्ष 

आशा है कि आपको गुरु के महत्व का ज्ञान हुआ हो। अंत में निष्कर्ष के तौर पर कहना चाहूंगा कि गुरु ही हमें जीवन जीने का मार्ग सिखाता है, क्योंकि वह स्वयं उस मार्ग पर चलकर आया है। कोई भी व्यक्ति जिससे हमारे अन्त:करण का परिष्कार होता हो, ज्ञान में वृद्धि करता हो, वह हमारा गुरु ही है। गुरेव विश्वम्- गुरु में ही सारा विश्व है।

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