आर्यभट्ट की जीवनी इन हिंदी
Aryabhatta Biography in Hindi
Aryabhatta Life History in Hindi
🇮🇳 आर्यभट्ट की जीवनी इन हिंदी (Aryabhatta Biography in Hindi) class 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए और अन्य विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए लिखा गया है।
शून्य की खोज करने वाले आर्यभट्ट (Aryabhatta who Invented Zero)
शून्य और पाई के मान जैसी अद्भुत खोज करने वाले आर्यभट्ट को भला कौन नहीं जानता। ये आज के वैज्ञानिकों के लिए एक बहुत बड़ी प्रेरणा हैं। आर्यभट्ट प्राचीन समय के प्रसिद्ध खगोलशास्त्रियों, ज्योतिषविद व गणितज्ञों में से एक थें। उन्होंने अधिक साधन उपलब्ध न होने पर भी विज्ञान के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने इस बात का पता पहले ही लगा लिया था कि पृथ्वी गोल है और यह अपनी धुरी पर घूमती है तथा सूर्य व चंद्रमा की परिक्रमा करती है। आर्यभट्ट की प्रसिद्ध रचना आर्यभटिया में इनके जीवन और इनके कार्यों के बारे में विस्तार से जानकारी मिलती है।
आइए इस पोस्ट में हम आपको आर्यभट्ट के बारे में और भी जानकारी देते हैं।
आर्यभट्ट की जीवनी इन हिंदी – Aryabhatta who Invented Zero Biography in Hindi Language :-
आर्यभट्ट का जन्म (When and Where was Aryabhata Born) :
आर्यभट्ट के जन्म और जन्म स्थान के बारे में कोई सही जानकारी तो उपलब्ध नहीं है। लेकिन इनके जन्म से संबंधित कई अनुमान जरूर लगाए जा चुके हैं। उन अनुमान के अनुसार यह कहा जाता है कि गौतम बुद्ध के समय पर अश्मक देश के कुछ लोग मध्य भारत में नर्मदा नदी व गोदावरी नदी के बीच आकर बस गए थे। और मान्यताओं के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म दिसंबर, ई.स.476 में उसी स्थान पर हुआ था।
वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार यह भी कहा गया है कि आर्यभट्ट बिहार के पटना में जन्में थें, जिसका प्राचीन नाम पाटलीपुत्र था। और मान्यता के अनुसार इसके निकट में स्थित कुसुमपुर में ही इनका जन्म हुआ था।
आर्यभट्ट की शिक्षा (Aryabhata Education) :
आर्यभट्ट की शिक्षा के जन्म स्थान की तरह ही उनकी शिक्षा के भी कोई ठोस प्रमाण अभी तक प्राप्त नहीं हुए हैं। हां लेकिन कुछ अनुमान अथवा मान्यताओं के अनुसार वह उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए प्रसिद्ध विश्वविद्यालय कुसुमपुर में गए थे। यह विश्वविद्यालय उस समय उच्च शिक्षा के लिए काफी प्रसिद्ध था।
आर्यभट्ट की रचनाएं (Works of Aryabhata) :
आर्यभट्ट के महान कार्य उनके प्रसिद्ध ग्रंथों में देखी जा सकती हैं। उनकी रचनाओं का प्रयोग आज भी वैज्ञानिकों द्वारा किया जाता। उनकी अधिकतम रचनाएं तो विलुप्त हो चुकी हैं, लेकिन उनके कुछ ग्रंथ हैं, जिनमें उनके कार्यों का विस्तार मिलता है। जैसे – आर्यभटीय, दशगीतिका, तंत्र एवं आर्यभट्ट सिद्धांत। इन सभी रचनाओं में सबसे अधिक प्रसिद्ध व लोकप्रिय रचना आर्यभटीय है।
आर्यभटीय नामक ग्रन्थ (Aryabhatiya Book) :
आर्यभटीय ग्रंथ आर्यभट्ट की सबसे लोकप्रिय व प्रसिद्ध ग्रंथ है। यह उनके अद्भुत कार्यों का आईना है। मान्यताओं के अनुसार इस ग्रंथ का यह नाम उन्होंने खुद नहीं रखा होगा, बल्कि उनके समीक्षक द्वारा यह नाम दिया गया होगा। आर्यभट्ट के इस ग्रंथ में उनके गणित और खगोल विज्ञान का एक संग्रह मिलता है। गणित वाले भाग में अंकगणित, बीजगणित, सरल त्रिकोणमिति व गोलीय त्रिकोणमिति का उल्लेख किया गया है।
आर्यभटीय में वर्गमूल, घनमूल, समान्तर श्रेणी और विभिन्न प्रकार के समीकरणों का भी वर्णन किया गया है। इसके अलावा इसमें आपको सतत भिन्न, ज्याओं की तालिका, द्विघात समीकरण, घात श्रृंखलाओं का योग आदि का वर्णन भी मिलेगा। आर्यभट्ट के आर्यभटीय में कुल 108 छंद देखने को मिलते हैं। यही कारण है, जो इसे आर्य–शत–अष्ट के नाम से भी जाना जाता है।
आर्यभट्ट के योगदान (Contribution of Aryabhatta) :
आर्यभट्ट के गणित व खगोलशास्त्र के क्षेत्रों में बहुत सारे योगदान हैं, जो कि निम्नलिखित हैं –
शून्य की खोज की (Discovered Zero) –
आर्यभट्ट ही वह व्यक्ति हैं, जिन्होंने शून्य यानी ज़ीरो की खोज की। गणित के क्षेत्र में उनकी यह खोज एक बहुत ही बड़ी खोज है। जीरो के बिना कोई भी गणना करना असंभव ही था, लेकिन इन्होंने ज़ीरो की खोज करके हर संख्या का मान बढ़ा दिया। क्योंकि किसी भी संख्या के आगे ज़ीरो लगाने से उसका मान दस गुना बढ़ जाता है।
पाई की खोज की (Discovered the Pie) –
पाई जैसी अद्भुत खोज भी आर्यभट्ट के द्वारा ही की गई खोज है। यह बात उनके आर्यभटीय के गणितपाद 10 से पता चलती है। उसमें आर्यभट्ट लिखते हैं –
सौ में चार को जोड़ें, उसके बाद आठ से गुणा कर लें, फिर 62,000 जोड़ें तथा 20,000 से भागफल निकाल लें। इतना करने के पश्चात् जो उत्तर प्राप्त होगा, वह पाई का मान होगा, यानी
[ ( 4 + 100) * 8 + 62,000 ] / 20,000 = 62,832 / 20,000 = 3.1416
खगोल शास्त्र की खोज (Exploration of Astronomy) –
आर्यभट्ट ने खगोलशास्त्री के रूप में भी अपना एक बड़ा योगदान दिया है। उनकी खगोल प्रणाली कोे औदायक प्रणाली कहा जाता है। उनके बाद की आर्यभट्ट की कुछ रचनाओं में पृथ्वी के परिक्रमा की कही हुई बात मिलती है। आर्यभट्ट के अनुसार पृथ्वी की कक्षा गोलाकार नहीं, बल्कि दीर्घवृत्तीय है।
सौर मंडल की गतिशीलता (Solar System Dynamics) –
आर्यभट्ट ने सौरमंडल की गतिशीलता का भी पता लगा लिया था। उनके अनुसार पृथ्वी अपने अक्ष पर निरंतर रूप से घूमती रहती है, जिस कारण आकाश में मौजूद तारों की स्थिति बदलती रहती है। यह तथ्य इसके एकदम विपरीत है कि आकाश घूमता रहता है। इस बात को आर्यभट्ट ने अपने ग्रंथ आर्यभटीय में भी बताया है।
पृथ्वी का नक्षत्र काल (Sidereal Period of Earth) –
आर्यभट्ट ने पृथ्वी की कुछ परिक्रमा का भी एकदम सही अनुमान लगाया था। जैसे उनका कहना था कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती हुई सूरज की परिक्रमा प्रतिदिन 24 घंटों में नहीं करती। बल्कि यह इसे 23 घंटें, 56 मिनट व 1 सेकंड में ही खत्म कर लेती है। इस तरह आर्यभट्ट के अनुसार 1 वर्ष में 365 दिन, 6 घंटे, 12 मिनट तथा 30 सेकंड होते हैं।
इसके अलावा आर्यभट्ट ने त्रिकोणमिति, बीजगणित, ग्रहण, सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण तथा ज्योतिर्विद के रूप में भी बहुत बड़े बड़े योगदान दिए हैं। वो भी डेढ़ हज़ार साल पहले जब इन सब चीजों की खोज के लिए कोई उचित साधन उपलब्ध नहीं थे।
आर्यभट्ट की मृत्यु (Aryabhatta Death) –
विज्ञान और गणित जैसे क्षेत्रों में अपना लोहा मनवाने वाले आर्यभट्ट जी की मृत्यु लगभग 550 ईसा पूर्व में हो गई थी।
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