दुर्गा पूजा पर निबंध (Durga Puja Hindi Essay)

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दुर्गा पूजा पर निबंध
Durga Puja Hindi Essay


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प्रस्तावना

भारत एक ऐसा देश है जहाँ असाधारण प्रतिभा के लोगों ने जन्म लिया है। उन लोगों में विवेक, बुद्धिमत्ता, साहस, निर्भयता, करूणा आदि सभी गुणों की खान थी। अब भी ऐसे लोग अपनी प्रतिभा से जन कल्याण के कार्य कर रहे हैं। इनमें से भले ही ज्यादातर प्रतिशत पुरुषों का रहा फिर भी महिलाएँ की गणना कम नहीं है। सैकड़ों महिलाएँ अपने घरों से बाहर आकर देश व दुनिया को अपनी गुणों से प्रभावित कर देती हैं।

प्राचीन काल में ऐसी ही एक महिला थीं माँ दुर्गा। वे साक्षात आदिशक्ति थीं। उनकी पूजा बड़े पैमाने पर सम्पूर्ण भारत व विदेशों में भी की जाती है। आइये अब जानते हैं माँ दुर्गा व दुर्गा पूजा के संबंध में आवश्यक बातें-

आदिशक्ति माँ दुर्गा

माँ दुर्गा साक्षात आदिशक्ति व परमेश्वरी हैं। वे शक्ति, साहस व प्रेम प्रतीक हैं। उनके नौ विभिन्न रूप भी हैं। माँ दुर्गा को मानने वाले लोग नवरात्रों में उपवास व व्रत आदि रखते हैं। नवरात्र दुर्गा माता का सबसे बड़ा त्यौहार भी है। दुर्गा माँ को विभिन्न नामों से पुकारी जाता है जैसे जगदंबा, जगद्जननी, देवी माँ, शिवानी, भवानी आदि। भगवान शिव की अर्धांगिनी दुर्गा माँ के हाथों में सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र दर्शाए जाते हैं।

माँ दुर्गा अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हैं जबकि दुष्टों और पापियों को भी करूणा की दृष्टि से देखती हैं। उन्हें स्वयं सुधरने के असंख्य अवसर देती हैं। परंतु जब उनके पापों घड़ा भर जाता है तो उन्हें उनके ही जीवन पशुतुल्य जीवन से छुटकारा दिलाती हैं। 

दुर्गा पूजा का महत्व

दुर्गा पूजा वर्ष में दो बार चैत्र माह तथा अश्विन माह के नवरात्रों में की जाती है। माता को प्रसन्न करने के लिये कई भक्तगण उपवास रखते हैं। माता से इच्छित वस्तु पाने के लिये कई प्रकार साधनाएँ भी की जाती हैं। दुर्गा पूजा में मन का निर्मल होना आवश्यक है। दुर्गा पूजा के समय शारीरिक रूप से स्वच्छ व स्वस्थ होकर माँ की स्तुति करनी चाहिए। 

कहा जाता है कि माँ दुर्गा ने महिष नामके असुर के बढ़ते हुए अत्याचारों से लोगों को मुक्ति दिलाई थी। इसीलिये माँ दुर्गा का एक नाम महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है। आदि गुरु शंकराचार्य ने महिषासुर मर्दिनी नामक स्त्रोत की रचना की है जिसमें दुर्गा माँ के गुणों व उनकी अद्वितीय महिमा को गायन किया गया है। इसके अलावा भी माँ दुर्गा पर संस्कृत व हिंदी भाषाओं में आरतियाँ, स्तोत्र व स्तुतियाँ आदि भी रची गई हैं। दुर्गा सप्तशती माँ दुर्गा से संबंधित सबसे अधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ है।

भारत के लगभग हर राज्य, शहर व गाँव में देवी माँ मंदिर पाये जाते हैं। नवरात्रों में देवी माँ के मंदिरों में इतनी भीड़ रहती है कि लोगों के पूजा क लिये सुबह से दोपहर हो जाती है। कई लोग मंदिरों के आसपास व विभिन्न स्थानों पर नवरात्रों में निशुल्क भोजन बाँटते हैं जिससे सभी वर्ग के लोग लाभान्वित होते हैं।

माँ दुर्गा के अन्य रूप

माँ दुर्गा के नौ रूप कहे जाते हैं। इनमें काली व दुर्गा सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। माँ के अन्य रूपों की ही नवरात्रों में पूजा व आराधना होती है। ये हैं- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धीदात्री। हर रूप की क्रमानुसार नौ दिनों तक पूजा होती हैं। श्रद्धा पूर्वक माँ को पुकारने वाले भक्त की माँ हर वांछना पूरी करती हैं। उसके लिये यश और वैभव के भंडार खोल देती हैं। वह व्यक्ति अपने जीवन को चमत्कारिक रूप से बदलता हुआ देखता है। माँ की महिमा यही तक सीमित नहीं है, वे स्वयं ईश्वर स्वरूप हैं और अपने भक्त को अमृतमय जीवन का वरदान देती हैं। 

संस्कृत की कुछ पंक्तियों में माँ दुर्गा का वर्णन बहुत अच्छे ढंग से किया गया है। उनमें से कुछ पंक्तियाँ अर्थ सहित नीचे प्रस्तुत हैं-

या देवी सर्वभूतेषु बुद्धि रूपेण संस्थिता

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

जो देवी सभी भूतों में बुद्धि के रूप में स्थित हैं, उनको मेरा नमन है, नमन है, नमन है।

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

जो देवी सभी भूतों में शक्ति के रूप में स्थित है उनको मेरा नमन है, नमन है, नमन है।

या देवी सर्वभूतेषु भक्ति-रूपेण संस्थिता

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

जो देवी सभी भूतों में भक्ति के रूप में स्थित है, उनको मेरा नमन है, नमन है, नमन है।

या देवी सर्वभूतेषु विद्या रूपेण संस्थिता

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

वे देवी जो सभी भूतों में विद्या के रूप में विराजमान हैं, उनको मैं नमन करता हूँ, नमन करता हूँ, नमन करता हूँ।

या देवी सर्वभूतेषु शांति रूपेण संस्थिता

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

वे देवी जो सभी भूतों में शांति के रूप विराजमान हैं, उन देवी को मेरा नमन है, नमन है, नमन है।

या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धा रूपेण संस्थिता

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

वे देवी जो सभी भूतों में श्रद्धा के रूप में अवस्थित हैं उनको मेरा नमन है, नमन है, नमन है।

उपसंहार

माँ दुर्गा की आराधना से लोगों के कष्ट व पीड़ाए नाश होती जाती हैं। कठिन से कठिन परिस्थितियाँ भी उनकी कृपा दृष्टि पड़ते ही सुधरने लगती हैं। देवी माँ केवल प्रेम व समर्पण से ही प्रसन्न हो जाती हैं। वे अपने भक्तों के लिये अत्यंत सरल और उदार दुर्गा हैं वहीँ दुर्जनों के लिये वीभत्स और सर्वनाशक काली हैं। दुर्गा माँ अपने भक्तों के लिये सदैव उदार व सरल स्वरूप में प्रकट होती है। जय माता दी।

दुर्गा पूजा क्यों मनाया जाता है

दुर्गा पूजा वर्ष में दो बार चैत्र माह तथा अश्विन माह के नवरात्रों में की जाती है। माता को प्रसन्न करने के लिये कई भक्तगण उपवास रखते हैं। माता से इच्छित वस्तु पाने के लिये कई प्रकार साधनाएँ भी की जाती हैं। कहा जाता है कि माँ दुर्गा ने महिष नामके असुर के बढ़ते हुए अत्याचारों से लोगों को मुक्ति दिलाई थी। इसीलिये माँ दुर्गा का एक नाम महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है। आदि गुरु शंकराचार्य ने महिषासुर मर्दिनी नामक स्त्रोत की रचना की है जिसमें दुर्गा माँ के गुणों व उनकी अद्वितीय महिमा को गायन किया गया है।

दुर्गा पूजा 2022 में कब है

इस साल दुर्गा पूजा 26 सितंबर को कलश स्थापना के साथ शुरू होगी, लेकिन षष्ठी तिथि से शुरू होने वाली पूजा 01 अक्टूबर से शुरू होकर 05 अक्टूबर को दशमी को विसर्जन के साथ समाप्त होगी.
Durga Puja Start : 01-10-2022
Durga Puja Visarjan : 05-10-2022

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