Essay on Train Journey in Hindi (मेरी पहली रेल यात्रा पर निबंध)

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Essay on Train Journey in Hindi
मेरी पहली रेल यात्रा पर निबंध


🚂 Essay on Train Journey in Hindi (मेरी पहली रेल यात्रा पर निबंध) पर यह निबंध class 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए और अन्य विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए लिखा गया है।

प्रस्तावना

जीवन में यात्राओं का महत्व बहुत होता है। एक इंसान अपने जीवन में कई प्रकार की यात्राएं करता है। आजकल यात्रा के भी कई आसान साधन उपलब्ध हो चुके हैं। आज एक सामान्य व्यक्ति भी अपने एक बाईक से या कार से दूर-दूर तक की यात्राएं कर सकता है। यात्राएं बेहद रोमांचकारी भी होती हैं। इसके विपरीत यात्राएं बहुत से लोगों में थकान, तनाव आदि भी पैदा कर देती हैं। बहरहाल, यहाँ मैं अपनी पहली यात्रा जो मैंने रेल से अपने माता-पिता और छोटी बहन के साथ की थी, वह साझा करने जा रहा हूँ। उस समय मेरी उम्र लगभग ग्यारह वर्ष की रही होगी। मेरे साथ मेरी छोटी बहन भी थी पर मुझे नहीं लगता कम आयु के कारण उसे इस यात्रा के बारे में स्मरण होगा। आइये मेरी उस रेलयात्रा के रोमांचक और अहम पहलुओं पर एक दृष्टि डालते हैं-

रेलवे स्टेशन की भीड़

अप्रैल माह की गर्मियों के दिन थे। कुछ दिनों पहले ही मेरी परीक्षायें समाप्त हुई थी जिसके कारण मेरी छुट्टियाँ चल रही थीं। हमें अचानक अपनी दिल्ली वाली बुआजी के घर शादी के सिलसिले में जाना था। उनके आग्रह पर पापा हमसे सामान पैक करने को कहा। मम्मी-पापा, मैं और मेरी छोटी बहन(4 वर्ष) ऑटो रिक्शे से रेलवे स्टेशन तक पहुँचे। दोपहर के डेढ़ बज रहे थे। हमारी ट्रेन 1:50 बजे की तय थी। हमारी टिकट पहले ही ऑनलाइन बुक हो चुकी थीं। जिसकी हमारे पास रसीद भी थीं। हम समय से थोड़ा जल्दी पहुँच गए थे। कुछ देर हम वहीं बनी हुए पत्थर की सीटों पर बैठे रहे। स्टेशन पर काफी संख्या में लोग मौजूद थे। गर्मी से सभी यात्री परेशान थे। प्लेटफॉर्म पर कई स्पीकर लगे हुए थे जिनमें से रेल के समय की जानकारी देने वाली महिला की आवाज आती थी। पापा मे बताया था कि इसे मशीन के इस्तेमाल से चलाया जाता है। मुझे अच्छा लगा। स्पीकर से हमारी रेल का नंबर भी बोला गया, वह अपने निर्धारित समय से कुछ समय देरी से आने वाली थी।

एक के बाद एक रेल का गुजरना

इस बीच कुछ ट्रेनें प्लेटफॉर्म पर आयीं और चली गईं। उनमें बैठे यात्रियों को मैं बड़े उत्साह के साथ दृष्टि लगाए देख रहा था। एक ट्रेन की गति कम थी क्योंकि वह प्लेटफॉर्म पर रुकने वाली थी। रुकते समय उसके पहियों के घर्षण से होने वाली आवाज मुझे आवाज लगी। मैं ट्रेन के पहियों को देखने के लिये आगे गया। मम्मी-पापा ने पूछा कि कहाँ जा रहे हो तो मैंने कहा कि इसके पहिये देखने थे। उन्होंने मेरी जिज्ञासा को समझकर कहा, “ठीक है पर दूर से ही देखना”। ट्रेन रुकी हुई थी। मैं उसके पहियों की बनावट देख रहा था। ये मजबूत लोहे के बने हुए थे। काफी सारी ऐसी चीजें उनसे जुड़ी हुई थीं जिनके बारे में मुझे नहीं पता था। मैंने सोचा कि इसमें बैठकर कितना अच्छा लगता होगा।

हमारी रेल का आना और सफर शुरु होना

आखिरकार मेरा इंतजार खत्म हुआ। थोड़े समय के बाद हमारी रेल प्लेटफॉर्म पर आयी। 2 बजकर पाँच मिनट हो रहे थे। यानि ट्रेन 15 मिनट ही लेट हुई थी। सैकड़ों की संख्या में सवारियाँ अपनी-अपनी सीट से उतर कर बाहर आ रही थीं। कुछ लोगों के पास बहुत ज्यादा सामान था तो वे कुली को बुलाने लगे। लोग उतरने और चढ़ने के लिये धक्कामुक्की कर रहे थे। इस बीच जब वहाँ से भीड़ खाली हुए तो हम लोग भी लखनऊ से नयी दिल्ली तक की यात्रा के लिये हम ट्रेन में बैठ गए। 

रेलगाड़ी में बैठने की कुछ स्मृतियाँ

हम अपना सामान लेकर रेल के एक डिब्बे के अन्दर में बैठने लगे। मैंने जाकर खिड़की वाली सीट पकड़ ली थी। खिड़की से बाहर लोगों की चहल पहल और आते जाते लोग दिख रहे हैं। मूँगफली और पानी की बोतल बेचने वाले भी कई लोग डिब्बों में मौजूद थे। पापा ने एक पानी की बोतल और दो पैकेट मूँगफली के लिये। मेरे उम्र के कई बच्चे भी अपने मम्मी-पापा के साथ ट्रेन में बैठे थे। कुछ देर रुकने के बाद जब ट्रेन चलने लगी तो मेरी उत्सुकता और भी बढ़ गई। पापा ने बताया था कि करीब तीन घंटों का सफर होगा। मेरी छोटी बहन भी मुझसे खिड़की वाली सीट से हटने की जिद करने लगी। उसके बहुत बार कहने के बाद मैंने बेमन से उसे सीट दे दी। अब भी कई अलग-अलग दृश्य मुझे खिड़की से दिखाई दे रहे थे। पेड़-पौधे और आसमान तेजी से आँखों के सामने से ओझल होता जा रहा था। इसके बाद हमारे धीरे-धीरे ट्रेन कुछ प्लेटफॉर्मों पर रुकने लगी। कई यात्री व फेरी वाले/विक्रेता चढ़ते व उतरते रहे। हमने तीन बार पानी की बोतलें ली और नमकीन  तथा बिस्कुट जैसा खाने का सामान भी लिया। पापा ने अपने पास बैठे एक बुजुर्ग से हमारे साथ कुछ खाने का आग्रह किया। उनके साथ कुछ बातें भी हुईं। बातों-बातों में उन्होंने बताया कि वे अकेले यात्रा कर रहे थे और हमारे समावेशी व्यवहार से बेहद प्रभावित हुए। हमारी ट्रेन करीब छह या सात बार विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर रुकते हुए नई दिल्ली की तरफ पहुँची।

उपसंहार

यह मेरी पहली रेलयात्रा थी इसलिये मैंने लगभग हर उस चीज पर ध्यान दिया जो मुझे रोचक और अजीब लगी। इस यात्रा ने मुझमें दुनिया के प्रति एक वास्तविक नजरिया देने में काफी सहायता की। एक ओर जहाँ लोग एक-दूसरे की सहायता भी कर रहे थे तो दूसरी ओर कई लोग ऐसे थे जिन्हें आये दिन होने वाली चोरियों व ठगी से खतरा बना हुआ था। कुल मिलाकर यह यात्रा मेरे लिये एक चौतरफा सबक और अनुभव रही। इस यात्रा के बाद भी मैंने कई यात्राएं की जिन्हें ये अनुभव मेरे काफी काम आए। 

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