गांधी जी की विचारधारा पर हिन्दी निबंध (Essay on Ideology of Gandhiji in Hindi)

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गांधी जी की विचारधारा पर हिन्दी निबंध
Essay on Ideology of Gandhiji in Hindi

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प्रस्तावना (Introduction)

विश्व में कई लोग ऐसे हुये हैं जिन्होंने अपनी विचारधाराओं के आधार पर शक्तिशाली जीवन जिया है। तथा इसके साथ ही मानवता को दिशा भी दिखायी है। ऐसे लोगों में हमारे देश भारत के भी बड़ी संख्या में लोग शामिल हैं जिनमें से एक नाम महात्मा गाँधी का भी है। महात्मा गाँधी के संबंध में हम सभी जानते ही हैं परंतु संभवतः उनकी विचारधारा, सिद्धान्तों एवं मूल्यों से भलीभांति परिचित नहीं हैं। इसीलिये आइये इस निबंध में हम गाँधी जी की विचाराधारा व सिद्धान्तों को उनकी जीवन घटनाओं से समझने का प्रयास करते हैं-

अहिंसा का आदर्श (Ideal of Non-violence)

महात्मा गाँधी ने भगवान बुद्ध द्वारा बड़ी मात्रा में प्रचारित व प्रसारित किये गये अहिंसा के आदर्श को अपनाने की सीख दी। उनकी जीवन घटनाओं में भी उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ या अन्य लोगों के तरह-तरह के अत्याचारों का विरोध अहिंसा को ध्यान में रखते हुये ही किया। उन्होंने अनेक ऐसे आंदोलन चलाए जिनमें उन्होंने अनशन किया, या‌त्रायें कीं, बहिष्कार किये परंतु हिंसा को सदैव किनारे पर रखा। भारत के अधिकांश लोग महात्मा गाँधी का समर्थन करते थे तथा उन्हें उनके कहे अनुसार अनुकरण भी करते थे।

परंतु वहीं कुछ ऐसे लोग भी थे जिनकी विचारधारा स्वतंत्र थी एवं गांधी जी से पूर्णतः विपरीत थी। इनमें कई क्रांतिकारी नेता जैसे सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद तथा अन्य कई स्वतंत्रता सेनानी भी सम्मिलित थे। स्वतंत्रता की प्राप्ति में इन दोनों ही विचारधाराओं के लोगों का योगदान उपयोगी रहा और अंततः 1947 में हमें स्वतंत्रता मिली। 1947 के बाद भी इन दो विचारधाराओं के लोगों की नहीं बनीं जिसकी कीमत देश को अपने दो अभिन्न भागों पश्चिमी पाकिस्तान तथा पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) को खोकर चुकानी पड़ी।

सत्य के प्रयोग (Experiment with truth)

बचपन से ही गाँधी जी ‌पढाई में एक अच्छे विद्यार्थी थे परंतु काफी शर्मीले स्वभाव के थे। उनकी माता पुतलीबाई ने उन्हें धर्म की शिक्षा भी दी। वे स्वयं सत्य बोलने में विश्वास रखते थे। अपनी दृढ़ता और आत्मविश्वास के बल पर उन्होंने सत्य बोलने के प्रयोग जारी रखें अर्थात सत्य का पालन करते रहे। इसके लिए उन्हें कई परेशानियों का सामना भी करना पड़ता था।

अंग्रेजों के न्याय-कानूनों का विरोध उन्होंने मौजूद तथ्यों की जाँच परखकर दलीलों के साथ उनका विरोध करते हुए किया। उनकी आत्मकथा भी ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ के नाम से प्रकाशित हुई है। इसके अलावा उनके भाषणों, वक्तव्यों, लेखों और पत्रों के माध्यम से भी उन्होंने अपने विचारों को व्यक्त किया।

स्वदेशी व स्वच्छता पर जोर (Emphasis on Cleanliness and Self- reliance)

महात्मा गाँधी स्वदेशी वस्तुओं के अधिकाधिक उपयोग पर भी बल देते थे तथा एक स्वच्छ समाज को भी अत्यन्त आवश्यक स्वीकार करते थे। स्वदेशी के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये उन्होंने खादी को बढ़ावा दिया तथा आत्मनिर्भर होने की बात कही। वे मानते थे कि हमें किसी भी अन्य देश पर अपनी मौलिक और दैनिक आवश्यकता के लिये कभी भी निर्भर नहीं होना चाहिए। ऐसा करने से हमारे आत्मविश्वास और मानसिक बल का हास तो होता ही है साथ ही आने वाली भावी पीढ़ी को भी अनुचित संदेश जाता है।

इसके उपरान्त स्वास्थ्य के दृष्टि से उन्होंने स्वच्छता को भी आगे रखा। गाँधी जी ने गंदगी और कूड़ा करकट से भरी जगहों पर कोई मानसिक व शारीरिक विकास की संभावना न होने की बात कही। वे स्वयं अपनी बैठने व खाने के जगहों की स्वच्छता की देखरेख करते थे। आज तो वैज्ञानिक भी मानते हैं कि हमारे वातावरण का प्रभाव हमारे शरीर के साथ-साथ मन पर भी पड़ता है। इसलिये स्वच्छता की अनदेखी करना स्वयं के साथ एक अन्याय ही है।

गाँधी जी के संबंध में विभिन्न महापुरुषों के वक्तव्य

गाँधी जी श्रीमद् भगवद्गीता से अपने उलझनों के समाधान व प्रश्नों के उत्तर पाते थे। उन्होंने स्वयं कहा भी है- 

मैं जब कभी किसी उलझन वह संकट से घिरा होता हूं तो मैं गीता माता के पास चला जाता हूँ, उपनिषदों का सार समेटी हुई उसकी गोद में मुझे मेरे सारे प्रश्नों के उत्तर मिल जाते हैं और संशय दूर हो जाते हैं।

गाँधी जी उन्नीसवीं सदी उत्तरार्द्ध के प्रसिद्ध हिन्दू संन्यासी स्वामी विवेकानंद से भी अत्यन्त प्रेरित थे । राजनीतिक तौर पर उन्होंने अपने गुरु गोपालकृष्ण गोखले को माना। 

गाँधी जी के समकालीन अनेक महापुरुषों व शीर्ष व्यक्तियों को गाँधी जी के व्यक्तित्व की दृढता पर आश्चर्य हो जाता था। कहते हैं कि लार्ड माउंटबेटन

जो कि शीर्ष अंग्रेज अधिकारी था, वह गाँधी जी से बातें करने व किसी मुद्दे पर बहस करते से भी घबराता था।

21 वीं सदी के ही महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था-

आने वाली पीढ़ी शायद‌ ही ये यकीन करे कि हाँड-मांस कोई ऐसा ईसान भी कभी इस धरती पर चला होगा।

गांधी जी के व्यक्तित्व की लोकप्रियता केवल भारत तक ही सीमित नहीं थी बल्कि विश्व के अलग-अलग भागों तक पहुंच रही थी।

उदाहरण के लिए दक्षिण अफ्रीका के प्रसिद्ध क्रांतिकारी रहे नेल्सन मंडेला भी गांधी जी के सिद्धान्तों का ही पालन करते थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि गांधी धी जी के सिद्धान्त पूरे विश्व के द्वारा सर्वसम्मत से अपनाए गए हैं।

उपसंहार (Conclusion)

इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि गांधी जी की विचाराधारा ऐसी है कि जिसमें मानव के मौलिक जीवन मूल्यों से जुड़ाव है तथा सामाजिक मूल्यों का भी पोषण होता है। महात्मा गांधी का जीवन हमें न केवल जीवन मूल्यों की, बल्कि आध्यात्मिक मूल्यों की भी सीख देता है। उनकी विचारधारा बिल्कुल सादा और विकासोन्मुखी है। सत्य व अहिंसा जैसे मानवीय गुणों को अपनाना ही परस्पर विकास की यात्रा जारी रखने का माध्यम है। गाँधी जी का जीवन एक आदर्श जीवन था और उनसे हम आज भी प्रेरित हैं तथा मार्गदर्शन पाते हैं।

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विनम्र अनुरोध

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