वसंत ऋतु पर निबंध (Essay on Spring Season in Hindi)

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वसंत ऋतु पर निबंध
Essay on Spring Season in Hindi


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वसंत ऋतु पर निबंध प्रारूप १

आई वसंत बहार
पतझड़ के मारे तरुओं पर
आने लगा निखार
परिवर्तन के क्षण आए
धरती के सपने अंकुराएँ
अंतरिक्ष से बरस रहा है
वसंती उपहार
द्रुम लतिकाएँ हुई पल्लवित
शाखाएँ हैं हर्षित-पुष्पित
नस नस में आया परिवर्तन
झलक रही है रसधार

वसंत को “ऋतुराज” की संज्ञा दी गई है शिशिर ऋतु में ठूंठ हुए पौधों में कोमल पत्ते कलिया, फूल तथा फल आ जाते हैं। वसंती हवा वातावरण में मादकता घोल जाती है। प्राकृतिक सौंदर्य चारों ओर बिखर जाता है। खेतों में फूली सरसों को देखकर लगता है मानो धरती ने पीली ओढ़नी ओढ़ रखी है। आमों में मंजरियाँ आ जाती है। कोयल मतवाली हो कुक-कुक कर वसंत के आने की सूचना सभी को देती फिरती है। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह ऋतु अत्यंत उत्तम मानी जाती है। वसंत पंचमी, बैसाखी, होली इस ऋतु के प्रमुख त्यौहार हैं। सचमुच हमारे देश जैसी ऋतु मानव जाति को विविधता धरती पर अन्यत्र दुर्लभ है। प्रसन्नता वह वसंत है जिसके आगमन पर ह्रदय की कलियाँ खिले फूलों की तरह हंस पड़ती है। वसंत पंचमी के बारे में एक आख्यान आता है कि जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तत्पश्चात उसे देखकर उदास हो गए क्योंकि उसमें उदासीनता थी, मधुरता नहीं, गतिशीलता नहीं, निर्जिविता थी। ब्रह्मा जी ने माँ आदिशक्ति का आह्वान किया बोला – मां इस सृष्टि को वाणी का वरदान दो। माँ सरस्वती ने वीणा बजा कर समस्त सृष्टि को वाणी का वरदान दिया। जब वाणी मिली तो झरने के संगीत, नदियों के कल कल की ध्वनि, पक्षियों के कलवर, कोयल की कू कू, पत्तों की सरसराहट से ब्रह्मांड वाणीमय हो गया। इसी वरदान के कारण देवी सरस्वती को वागीशा भी कहा जाता है।

जब सृष्टि की सारी गतिविधियां निमित्त चलने लगी तो ईश्वर ने वसंत को ऋतुराज घोषित किया तो शेष सभी ऋतुए अपने साथी राजा को कुछ उपहार देना चाहती थी। विचार विमर्श होने लगा क्या दें, हमारे सम्मान की बात है जीवन से बड़ा अमूल्य संपदा क्या हो सकती है क्यों ना हम अपने जीवन का समय अपने साथी ऋतुराज को दें। पाँचो ऋतुओ ने अपने जीवन के 8 दिन समर्पित किया।इस तरह वसंत के हिस्से में 40 दिन आया जब। ऋतुराज को यह जीवनदान मिला तब सारी प्रकृति ने खुशबू फैलाकर उल्लास प्रकट किया

 

 वसंत व संत दोनों एक जैसे होते हैं, ना खुद पीड़ा में रहते हैं ना दूसरों को पीड़ा देते हैं। संत की तरह वसंत भी संताप रहित हमेशा दूसरों की भलाई में लगा रहता है। वह बबूल हो या आम हो या बरगद सब को एक समान हरियाली का वरदान देता है। वसंत सम दर्शिता का दर्शन समेटे हुए है। 

वसंत एक उल्लास है, जोश है, एक जुनून है। जब वह नशे के रूप में मन मस्तिष्क, शरीर में उतरता है तो संपूर्ण जीवन अमीर वसंतमय हो जाता है।  इतिहास साक्षी है जब इस वसंती चोला को जिस नर ने धारण किया, नारायण बनकर इतिहास के पन्ने में स्वर्णाक्षरों में अंकित होकर प्रेरणा के स्तंभ बन गए। वसंत पंचमी के दिन ही देश बलिदानी पृथ्वीराज चौहान ने सहस्त्र बार आक्रमण करने वाले मोहम्मद गौरी के शरीर का अंत अफगानिस्तान में शब्दभेदी बाण द्वारा किया था। रामदास जब “स्वान्तः सुखाय” को त्याग कर जब परमार्थ का बाना पहना तो समर्थगुरु रामदास बनकर शिवाजी को अजय तलवार भेंट की। यही नहीं भारतीय वीर सपूतों का वसंत तो कुछ निराला ही है। उन पर वसंत का ऐसा चोखा रंग चढ़ा कि हंसते-हंसते आजाद, भगत सिंह, सुखदेव ना जाने कितने अनगिनत स्वतंत्रता सेनानी फंदे का माला पहनकर मां भारती के चरणो में अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। वसंतिक जोश ही तो था जो की रानी लक्ष्मीबाई, अहिल्याबाई होल्कर ने शत्रुओं के दांत दांत खट्टे करते हुए देश की आन बान शान को अक्षुन्न बनाए रखी। अपने संस्कृति ध्वजा को फहराते हुए स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी शंकराचार्य, योगानंद ने पूरे विश्व में भारतीय कीर्ति व वैदिक धर्म स्तंभ को स्थापित किया। वेद भूति तपोनिष्ठ पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के जीवन में भी वसंत पंचमी के दिन ही उनके गुरु ने मार्गदर्शन किया। गुरु के मार्ग मार्ग दर्शन पाकर शिष्य निहाल हो गए। उन्होंने गायत्री गंगा को जन-जन तक प्रवाहित कर, ज्ञान प्रकाश अखंड ज्योति प्रकाशित कर सबका जीवन यज्ञ मय कर दिया। समुद्र की स्याही व समस्त वन की लेखनी से भी यदि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के वक्तित्व व कंन्तृत्वा का वर्णन किया जाए तो भी असंभव है।

वसंत को यूंही ऋतुराज नहीं कहते इसकी अनुभूति से, इसकी छुवन से कितने ही कवियों के अन्तर्मन में कविता की नव कोपलें फूटी है।


जरा देखिए तो सही
मालकौस की ठंडी रागिनी चीरकर खेलने लगा हिंडोला का रंग।
मन की धरती पर उतरने लगी वसंत की धूप।
पीले जादू से महकने लगा मनमोर।
एक तितली अपने रंगीले पंख में समेट लाई वसंत ऋतु का आसमान।
सरसों के खेत में दूर-दूर तक विछे पीत आमंत्रण।
धरा की नयन-कोर में कापता मधुमन क्षण।
शिथिर की लंबी काली रात के बाद यह कौन आया है ।
प्राची के पथ से जो लिख रहा है सुगंदो का वैभव।


कौन-कौन है जो भर रहे हैं दिशा-दिशा में मधुछंदर मधुप की मधुर इस गुनगुन में ना जाने कितने कवियों को आमंत्रित किया है कविता लिखने के लिए प्रेरित किया है।
कहां से शुरू करें वास्तविक सृजन की सीमा ठहरी असीम। कवियों का कैसा रहा है वसंत देखने की उत्कृष्ट इच्छा हो रही है। कवियों के गुरु कालिदास को देखते हैं। कालिदास की कविता तो देववाणी संस्कृत का श्रृंगार है, इनमें हर ऋतु का रंग है, लेकिन उनकी रचनाओं में वसंत की श्री व शोभा कुछ अनूठी ही है। कालिदास के काव्य में काव्यकन्या शकुंतला, शिवप्रिया, पार्वती, यथार्थप्रीया, रूपोन्त्मा, सभी नयिकाने वसंतरूपा प्रकृति पुत्रियाँ है। वे कहते हैं – “सर्वाप्रिये चारुतरं वसंते” अर्थात वह सर्वप्रिय वसंत ऋतु है।
वसंत के सौंदर्य से कवि गुरु रविंद्र नाथ टैगोर अनुभूति है। कहते हैं जिस दिन प्रकृति ने धरती रची, उसी दिन प्रेम रचा, और वसंत ऋतु भी रची होगी। फिर उसके बाद प्रकृति के सारे सुर व रंग जुगलबंदी करते दिखे तो लोगों ने उन्हें वसंत कह दिया।

पाश्चात्य कवि शैली वसंत को काल्पनिक जीवन जीवन शक्ति देते हैं किटस विम्बों से समृद्ध करते हैं, लेकिन टैगोर इन सब का संगम कर अध्यात्म और अद्भुत आनंद से अनुप्राणित करते हैं। वह कहते हैं – जाने से पहले मैं जानना चाहता हूं कि हरी पृथ्वी आकाश की ओर क्यों निहारती है। वह मुझे अपनी गोद में बुलाती है। प्रस्थान से पूर्व मै अपने गीत को वरदान देना चाहता हूं और अपने पात्र को छह ऋतु के फल-फूलों से भर लेना चाहता हूं।

महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जिनका जन्म तो वसंत पंचमी को हुआ था पर जीवन में हमेशा पतझड़ ही बनी रही। निरंतर घात-प्रतिघात सहते हुए उन्होंने स्वयं संवेदना नहीं खोई। तभी वह अपनी लेखनी से लिख सके –


अभी न होगा मेरा अंत
अभी तो आया है मेरे मन मृदुल वसंत

उनकी इसी वसंत आस्था ने उन्हें हमेशा अपराजेय बना के रखा। जयशंकर प्रसाद को तो जैसे वसंत की अनवरत प्रतीक्षा थी। तभी तो उन्होंने कहा –


पतझड़ या झाड़ थे, सुखे से फुलवारी में
किसलय दल कुसुम बिछाकर आए तुम इस क्यारी में ।

कवि सर्वेश्वर दयाल कुछ नए और अनूठे अंदाज में स्वागत करते हैं वसंत का। वह कहते हैं –

आए महंत वसंत
मखमल के झूल पड़े हाथी पाग पीला
चॅवर सदृश डोल रहे सरसों केसर वसंत ।

वासंतिक सुषमा को निहार कर खुदा के दीवाने, कृष्ण की अनुरागी आगरा के कवि नजीर कहते हैं-

मिलकर सनम से अपने हंगाम दिलकुशाई
हँसकर कहा ये हमने ए जा ।वसंत आई।

वसंत की मनोहरी छाया प्रकृति के कण-कण से निठुरे दिनों की याद धीरे-धीरे धूमिल कर देती है। फिर कोई नन्ही चिड़िया झरवेरी पर बैठी धूप का टुकड़ा चुनते हुए सबको जगाती है। इसे कवि जयदेव अपने शब्दों में कहते हैं –


छाया सरस वसंत विपिन में करते श्याम विहार ।
गोपी जनों के संग रास रचाते श्याम बिहारी ||

ऋतु वसंत धरती के आंचल पर टके हर नन्हे बुटो को फलने-फूलने पल्लवित होने की उर्जा प्रदान करती है। वसंत की हितोर सबको समय भाव से दुलारती, गुदगुदाती गुजरती है। इसे देखकर श्यामवीर कहते हैं –

यूं बार एक गुल से अब के,
झुके हैं निहाल
ए बाग झुक झुक के जैसे करते हैं
दो-चार यार बात

वसंत की बातें हर किसी ने अपने अपने ढंग से कही है भारत भूमि के वसंत को पश्चिमी देशों ने स्प्रिंग नाम दिया है इस शब्द का अर्थ है उछलता या भागता । यो देखे तो वसंत भागते हुए या एकदम से उछलकर नहीं आता। वर्षा व शीत के बाद धीरे से आता है। स्प्रिंग्स जिसके लिए कवि शैली (Shelley) ने कहा है –


“If winter comes, can spring be far behind?

पतझड़ आया है तो क्या प्रतीक्षा करो वसंत भी आता ही होगा।

ऋतुराज वसंत – कवियों का मन-मीत साथ में हम सब का भी सखा है। विश्व की सभी सभ्यताओं में गूँजता हुआ प्रेम और आनंदकाल है।
ऋतुराज वसंत ने केवल कवियों की कविताओं में ही है, बल्कि इसके साथ तृप्ति मन की सभी आशाएं जुड़ी हुई है। जीवन के आंगन में सदा सुख, समृद्धि और मंगल का प्रतीक बनकर यह युगो में उतरता रहा है। आनंद की वर्षा करना तो जैसे स्वभाव है उसका।


“सत्यम शिवम सुंदरम” को यदि कहीं संपूर्णता फलित होते देखा जा सकता है तो बस यही। मनवा जीवन को यह तब तक महकाता है, जब तक कि इसके रस से कोर कोर-कोर ओर-छोर न भीग जाए। सत्य यही है कि इसके बारे में कवियों ने जितना गाया इस लेखनी ने जितना भी लिखा सब कम है, अति अल्प है। काव्यों व महाकाव्यों के अनंत भंडार भी कहां बांध सके हैं इसे। वसंत तो शब्दातीत है।

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